कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते देश भर में 21 दिनों का लॉकडाउन जारी है जिसके ख़त्म होने की मियाद 14 अप्रैल की है। लेकिन जिस प्रकार देश के कोने-कोने से कोरोना संक्रमण के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं, सबके दिलो-दिमाग में सवाल गूंजने लगे हैं कि आखिर ये लॉकडाउन कब खुलेगा? खुलेगा भी या नहीं? किस हद तक खुलेगा? क्या फिर कभी जिंदगी पहले जैसी उन्मुक्त हो पाएगी?
इसका जवाब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संकेतों में दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि 15 अप्रैल से लॉकडाउन खोला जा सकता है और इसे चरणबद्ध तरीके से खोला जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया है कि उनके राज्य में निर्धारित तारीख़ के बाद लॉकडाउन हटेगा या नहीं, यह जनता के व्यवहार और सरकारी निर्देशों के अनुपालन पर निर्भर करेगा।
मंत्रिमंडल की बैठक में तमाम केंद्रीय मंत्री भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने यही मंथन करते रहे कि लॉकडाउन को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता, मगर इसे हर जगह से एक ही बार में हटाया भी नहीं जा सकता। संकेत यही है कि हॉटस्पॉट चिह्नित करके शहरी और ग्रामीण भारत के लिए अलग-अलग रणनीति पर अमल करते हुए लिमिटेड लॉकडाउन की राह पर आगे बढ़ा जाएगा और सड़क व रेल जैसे सार्वजनिक परिवहन को धीरे-धीरे बहाल किया जाएगा।
एक तरफ कोरोना-संबंधी जांच, परीक्षण, आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग, क्वरेंटीन, सख्त पुलिसिंग और ज़रूरतमंदों को राहत पहुंचाने का काम जारी रहेगा और दूसरी तरफ आम जनजीवन को पटरी पर लाते हुए सीमित आर्थिक और शैक्षणिक गतिविधियां शुरू की जाएंगी।
देश के कुछ समाजशास्त्रियों का कहना है कि भारत की उत्सवधर्मी और गहरे मेल-जोल वाली संस्कृति की अनदेखी करते हुए अगर आधी-अधूरी तैयारियों के बीच लॉकडाउन खोल दिया गया, तो सामुदायिक संक्रमण कई गुना तेजी से बढ़ेगा और हालात बेकाबू हो जाएंगे।
जनता कर्फ्यू के बाद समूह में शंख, घंटा, थाली बजाने वाले लोग और अब चैत्र नवरात्रि के दौरान धार्मिक स्थलों पर उमड़ रही भीड़ लॉकडाउन के उद्देश्य को ही बेमानी बना चुकी है। आगे आने वाली जयंतियों और त्योहारों पर जमावड़ों का आलम क्या होगा, कोई नहीं जानता।
अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लोग कोरोना वायरस से तो रोकथाम के उपाय करके किसी तरह बच जाएंगे लेकिन उत्पादन गतिविधियां ठप रहने से करोड़ों लोग भूखे मर जाएंगे और मृतकों में सिर्फ ग़रीब ही शामिल नहीं होंगे!
भारत ही नहीं, कोरोना वायरस की बाढ़ रोकने के लिए चीन से शुरू करके इटली, फ्रांस, आयरलैंड, ब्रिटेन, डेनमार्क, न्यूजीलैंड, पोलैंड और स्पेन समेत कई देशों में धड़ाधड़ लॉकडाउन किया गया। लेकिन अब इसे ख़त्म करने को लेकर दुनिया भर में दो विचार आमने-सामने खड़े हो गए हैं।
अर्थव्यवस्था संभालें या मौतें रोकें?
यह बहस जोरों पर है कि पहले कोरोना वायरस से हो रही मौतें रोकी जाएं या रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था संभालने को प्राथमिकता दी जाए। इसी कशमकश के चलते अमेरिका में लॉकडाउन टलता रहा था और आज हालत यह हैं कि अब तक उसके 3 लाख से ज्यादा नागरिक इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं तथा कई हजार लोगों की मौत हो चुकी है।
आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाने के चलते फैली बेरोजगारी के कारण करोड़ों अमेरिकी नागरिक अपने-अपने राज्यों में बेरोजगारी भत्ता पाने के आवेदन कर रहे हैं।
मंदी आ चुकी है!
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने भी एलान कर दिया है कि मंदी आ चुकी है और इस बार यह 2008 के आर्थिक संकट से अधिक भयावह होगी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी महामारी या आपदा में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ही ठप हो जाए! भारत जैसे विकासशील देशों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह आर्थिक संकट विकसित देशों की तुलना में कई गुना भयंकर साबित हो सकता है। खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते विशाल वर्कफोर्स को दोबारा कार्यरत करने में भारत के पसीने छूट जाएंगे।
लोगों की जान बचाना प्राथमिकता
इतना ही नहीं, यह प्रश्न दुनिया के सामने नैतिकता और मानवता का मूल प्रश्न बन कर उभरा है। हमने देखा है कि इटली में कोरोना संक्रमित बूढ़ों पर जवान मरीजों को बचाने को तरजीह दी गई! अब डब्ल्यूएचओ और आईएमएफ़ ने जोर देकर कहा है कि फिलहाल लोगों की जान बचाना नौकरी-धंधा बचाने से कहीं ज्यादा जरूरी है। इनके मुताबिक़, अगर लोग जिंदा रहे तो अर्थव्यवस्था को बाद में भी संवारा जा सकता है लेकिन कोरोना वायरस पर नियंत्रण पाना सरकारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र सरकार से पर्याप्त परीक्षण किट, मास्क और चिकित्सकीय उपकरण न मिलने का रोना रो रहे हैं। कोरोना के मरीजों का निहत्थे होकर उपचार कर रहे सैकड़ों डॉक्टरों के संक्रमित हो जाने के भी समाचार हैं।
भोजन और चिकित्सा के अभाव में कोरोना संदिग्धों के क्वरेंटीन केंद्रों से निकल भागने की खबरें आ रही हैं! ऐसे में लॉकडाउन खुलेगा तो देश भर में जहां-तहां फंसे लोगों को अपने घर की ओर भागने से कैसे रोका जा सकेगा? उनकी टेस्टिंग कैसे होगी?
माना कि लोग मुश्किलों में हैं और अलग-अलग वजहों से अपनी-अपनी जगह परेशान हैं। उन्हें राहत देने के लिए लॉकडाउन को ख़त्म करना लाजिमी है, लेकिन क्या हम अपनी हरकतों और रवैये से बाज आ चुके हैं? क्या केंद्र और हमारी राज्य सरकारें लॉकडाउन के बाद पैदा होने वाले हालात से निपटने के लिए वाकई चाक-चौबंद हैं?
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