कोरोना महामारी पूरे विश्व में अपना रौद्र रूप दिखा रही है। कोरोना संक्रमण से मरने वालों का आँकड़ा 2 लाख तक पहुँच चुका है। संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार करना भी एक बड़ी समस्या बन चुका है। किसी के शव के अंतिम संस्कार की विधि दरअसल इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने जीवनकाल में किस धर्म से संबंधित था। विश्व का बहुसंख्य समाज जिसमें विश्व की दो सबसे बड़ी जनसंख्या यानी ईसाई व मुसलमान शामिल हैं, इन दोनों ही धर्मों में शवों को ज़मीन में क़ब्र खोदकर दफ़्न किये जाने की प्राचीन परम्परा है। इस विषय में हिन्दू धर्म को सबसे उदार अथवा समावेशी धर्म माना जा सकता है। सिख धर्म में भी शव का अग्नि दाह-संस्कार ही किया जाता है।
तिब्बतियों में दो दिन तक मंत्रों का उच्चारण करने के बाद तीसरे दिन शव को उसके किसी संबंधी की पीठ पर रखकर खुली पहाड़ी पर ले जाया जाता है जहाँ शव पर पका हुआ जौ का आटा डाला जाता है, ताकि उसी के साथ चील-गिद्ध शरीर को अपना भोजन बना सकें। तिब्बतियों की ही तरह पारसी धर्म के लोग भी अंतिम संस्कार की परंपरा को दोखमेनाशिनी परंपरा के नाम से निभाते आ रहे हैं। इसके लिए पारसी समाज पूरी तरह से गिद्धों पर ही निर्भर है। इनके संस्कार स्थल को 'टॉवर ऑफ़ साइलेंस' कहा जाता है जो एक तरह का बग़ीचा होता है इसमें बने टावर की चोटी पर ले जाकर शव को रख दिया जाता है, फिर गिद्ध आकर उस शव को ग्रहण कर लेते हैं।
इंडोनेशिया के तना तोराजा क्षेत्र में शव के अंतिम संस्कार के दौरान पहले शव को ले जाकर विधि पूर्वक दफ़नाते हैं या फिर पहाड़ी से लटका देते हैं। इसके बाद घर आने पर सभी रिश्तेदारों तथा दोस्तों को बुलाकर दावत दी जाती है तथा गाना बजाना और नृत्य होता है।
लेकिन कोरोना महामारी से होने वाली मौतों के बाद कई स्थानों से अंतिम संस्कार से संबंधित ऐसे समाचार आ रहे हैं जो विचलित करने वाले हैं। जैसे कि पिछले दिनों महाराष्ट्र के मालवाणी क्षेत्र में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते एक 65 वर्षीय मुसलमान शख़्स की मौत हो गयी। मृतक के परिजन जब उसके शव को मालवाणी क़ब्रिस्तान ले गए तो क़ब्रिस्तान कमेटी के लोगों ने उसके शव को दफ़नाने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि चूँकि मृतक कोरोना वायरस से संक्रमित था लिहाज़ा संक्रमण फैलने के भय से उसे दफ़नाने नहीं दिया जा सकता। जबकि महानगर पालिका ने सीमित लोगों की मौजूदगी में शव को दफ़नाने की अनुमति भी दे दी थी। स्थानीय पुलिस ने भी हस्तक्षेप करते हुए क़ब्रिस्तान कमेटी के लोगों से शव दफ़नाने की अनुमति दिए जाने का आग्रह किया परन्तु इसके बावजूद वे नहीं माने। आख़िरकार कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप करने के बाद और क़रीब के ही एक हिन्दू श्मशान स्थल में शव को जलाने का अनुरोध किया और शव का अग्नि दहन के द्वारा अंतिम संस्कार किया गया।
श्रीलंका में कोरोना संक्रमण से मौत होने पर शव का अग्नि दाह कर अंतिम संस्कार करना अनिवार्य घोषित कर दिया गया है। इसके लिए बाक़ायदा क़ानून में संशोधन भी किया गया है।
श्रीलंका में 11 अप्रैल के राजपत्र में कहा गया कि जिस व्यक्ति की मृत्यु कोरोना वायरस से होने का संदेह है, उसके शव का अग्नि दाह से अंतिम संस्कार किया जाएगा। यह भी निर्देशित किया गया है कि शव को 800 से 1200 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर कम से कम 45 मिनट से एक घंटे तक जलाया जाए। चीन ने भी अपने देश में मरने वाले सभी कोरोना संक्रमित शवों को जलाने का निर्णय लिया है।
परन्तु यह भी सच है कि अमेरिका, फ़्रांस, स्पेन, इटली, ईरान, अरब देश व पाकिस्तान जैसे अनेक देशों में अभी भी कोरोना से मरने वालों के शवों को दफ़नाया ही जा रहा है। क्या इन देशों के लोग इस तर्क से वाक़िफ़ नहीं हैं कि कोरोना संक्रमित शवों को दफ़्न करने से संक्रमण फैलने का ख़तरा है?
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