कोरोना वायरस ने पूरे विश्व के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। ख़ास तौर पर पिछले दिनों जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साफ़ शब्दों में चेतावनी दे दी कि संभव है कि कोरोना वायरस संसार से कभी ख़त्म ही ना हो, इसकी भयावहता और भी पुख़्ता हो गयी। इस चेतावनी के आते ही विशेषज्ञों ने यह कहना शुरू कर दिया कि पूरी दुनिया में इस महामारी की वजह से मानसिक स्वास्थ्य का संकट भी पैदा हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की एक अन्य रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र को एक और ख़तरनाक संकट को लेकर आगाह किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की निदेशक के अनुसार इस समय पूरी दुनिया में छाया अकेलापन, भय, अनिश्चितता तथा आर्थिक रूप से होने वाली उथल-पुथल आदि बातें मनोवैज्ञानिक परेशानी का सबब बन सकती हैं। उन्होंने आगाह किया कि बच्चों, युवाओं यहाँ तक कि स्वास्थ्य कर्मियों में भी मानसिक कमज़ोरी पाई जा सकती है।
जो मुसलमान इनको कहे वह, मेरी नज़रों में इंसान नहीं है
- विचार
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- 17 May, 2020

रमज़ान के पवित्र महीने में दरिंदों ने काबुल के एक मैटरनिटी हॉस्पिटल पर ऐसा हमला किया जिसमें 24 लोगों की जानें चली गयीं। इसे युद्ध अपराध का दर्जा देना भी पर्याप्त नहीं।
गोया मानव के समक्ष एक ऐसा प्रलय रूपी संकट आ चुका है कि बड़े से बड़े वैज्ञानिक, रणनीतिकार, शासक, प्रशासक अफ़लातून सभी फ़िलहाल असहाय बने हुए हैं। स्वयंभू भगवान व उनके ईश्वर-अल्लाह के स्वयंभू एजेंट अपनी जानें बचाते फिर रहे हैं। बड़े बड़े 'धर्मउद्योग' ठप्प पड़े हुए हैं। इसी बीच महामारी की इस घड़ी में सड़कों पर इंसानियत का एक ऐसा जज़्बा उमड़ता दिखाई दे रहा है जो पहले कभी नहीं देखा गया। ग़रीब-अमीर हर शख़्स अपनी सामर्थ्य के अनुसार एक दूसरे की मदद करता नज़र आ रहा है। कोरोना से प्रभावित लगभग सभी देशों में सामुदायिक भोजनालय चल रहे हैं। जगह-जगह रक्तदान शिविर लगाकर बीमारों को स्वस्थ करने के प्रयास किये जा रहे हैं। प्राकृतिक क़हर के इस संकट में दुनिया धर्म-जाति के भेद भुला कर इंसानियत का प्रदर्शन कर रही है और ईश्वर-अल्लाह से पनाह माँग रही है।