यह हैरानी की बात नहीं है कि जब दुनिया COP-28 के तमाशे में पेट्रोलियम बनाम कोयले की ख़पत और कुल मिलाकर जैव स्रोत से कार्बन उत्सर्जन घटाने की ‘लड़ाई या महायुद्ध’ में लगी थी और ताक़तवर तेल उत्पादक देशों के दबाव में दुबई के इस आयोजन में पेश प्रस्तावों में हेर-फेर करनी पड़ी तब अमेरिकी और पश्चिमी जगत के नागरिक समाज समूहों की तरफ़ से एक दिलचस्प मांग उठी कि दुनिया को स्थानीय उत्पादों की ख़पत की तरफ़ ही लौटना पड़ेगा।