भारत में नौकरशाही तो राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बहुत पहले से बनती रही है। आर्थिक, वैदेशिक और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और सलाहकार भी सरकार के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व की भाव-भंगिमा के अनुरूप सलाह देते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौर में यह पहली बार देखने को मिल रहा है शीर्ष पदों पर बैठे डॉक्टर और वैज्ञानिक भी पूरी तरह राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं।

जिस तरह गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों को समझ में नहीं आ रहा है कि कोरोना का इलाज कैसे किया जाए, वैसे ही भारत सरकार के इन विशेषज्ञों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
वे भी सरकार की शहनाई पर तबले की संगत दे रहे हैं, यानी वही सब कुछ बोल रहे हैं जैसा सरकार चाहती है। समझ में ही नहीं आ रहा है कि देश में कोरोना महामारी से उपजे संकट का प्रबंधन कौन संभाल रहा है?