उत्तरी सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में गश्त के दौरान शनिवार को भारतीय सैनिकों द्वारा चीनी सैनिकों को अपने इलाक़े में घुसते हुए पाये जाने पर उन्हें रोका गया। इसके बाद दोनों देशों के सैनिकों के बीच पहले कहासुनी हुई, धक्का-मुक्की हुई और फिर दोनों ओर से पत्थरबाजी भी हुई। यह राहत की बात है कि दोनों देशों के सैनिकों ने एक-दूसरे पर गोलियां नहीं चलाईं।
दोनों देशों के बीच चार हजार किमी. लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा के कई इलाक़ों पर अक्सर एक-दूसरे के सैनिकों द्वारा अतिक्रमण की वारदात होती हैं जिन्हें आम तौर पर आपसी बातचीत के द्वारा निबटा लिया जाता है। अतिक्रमण की वारदात इसलिए होती हैं क्योंकि दोनों देशों की सीमाएं निर्धारित नहीं हैं और दोनों की इसे लेकर अपनी-अपनी धारणाएं हैं।
सीमाओं पर गश्त के दौरान जब सेनाएं एक-दूसरे के मान्यता वाले इलाक़े में जानबूझ कर या ग़लती से प्रवेश कर जाती हैं तो सैनिकों के बीच कुछ तनातनी होती है और फिर ध्वज बैठकों के द्वारा मसलों को सुलझा लिया जाता है।
सामरिक पर्यवेक्षक अक्सर यह कहते हुए संतोष जाहिर करते हैं कि भारत-चीन के सैनिकों ने 1967 के बाद कभी एक-दूसरे पर गोलियां नहीं चलाईं। हालांकि 9 मई को एक-दूसरे पर पत्थरबाज़ी की घटना भी सीमा प्रबंध के इतिहास में पहली बार हुई जिसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिये।
विश्वास बढ़ाने की हुई कोशिश
1967 की घटना भी सिक्किम की सीमा पर ही हुई थी। तब चीनी सैनिकों पर भारतीय सैनिक भारी पड़े थे और चीन ने अपने सैनिकों से संयम बरतने और चुपचाप रहने को कहा था। लेकिन ऐसी स्थिति दोबारा नहीं पैदा हो इस बात की गम्भीर कोशिशें शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद शुरू हुईं। भारत और चीन के बीच 1993 में पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विश्वास पैदा करने वाले उपायों को लागू करने का समझौता हुआ और इसके बाद फिर 1996 में भी इस समझौते को और गहराई दी गई।
दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे पर बढ़ते हुए परस्पर विश्वास के माहौल में न केवल आपसी व्यापार में भारी बढ़ोतरी दर्ज की जाने लगी बल्कि दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व ने भी एक-दूसरे के यहां आने-जाने का सालाना सिलसिला शुरू किया।
इसी माहौल में दोनों देशों के बीच सीमा के निर्धारण के लिये बातचीत का सिलसिला भी शुरू हुआ। 2003 में इस बातचीत को प्रधानमंत्री स्तर पर ले जाने का फ़ैसला किया गया जिसके तहत दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अपने नुमाइंदे नियुक्त किये। इसके लिये भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीनी प्रधानमंत्री ने अपने स्टेट काउंसेलर को नियुक्त किया, जिन्हें प्रधानमंत्री का विशेष प्रतिनिधि कहा गया। दोनों विशेष प्रतिनिधियों की अब तक 22 दौर की बेनतीजा वार्ताएं हो चुकी हैं।
सीमा-समझौता वार्ता किसी मुकाम पर इसलिए नहीं पहुंच रही क्योंकि भारत ड्रैगन की इस शर्त को मानने को तैयार नहीं हो सकता कि वह अरुणाचल प्रदेश का तवांग इलाक़ा उसे सौंप दे।
चूंकि दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रही है इसलिए इनके सैनिकों के बीच सीमाओं पर झड़पें भी होती रहती हैं। इसकी मिसाल 2013 में लद्दाख के चुमार इलाक़े के दौलतबेग ओल्दी और फिर 2014 में डेमचोक में देखने को मिली जब दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हो गई थीं।
लद्दाख के पानगोंग झील इलाक़े में भी दोनों देशों की सेनाएं अक्सर एक-दूसरे के सामने आ जाती हैं और एक-दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश करती हैं।
डोकलाम पर भारत का सख़्त रुख़
2017 के जून में तो हद ही हो गई, जब चीनी सैनिक भूटान के डोकलाम इलाक़े में घुस गए, जहां से वे भारतीय सैन्य चौकियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहे थे। इसलिए भारतीय सेना को मजबूरन भूटान के इलाक़े की रक्षा के लिये आगे जाना पड़ा। करीब 72 दिनों तक चली इस सैन्य तनातनी के दौरान चीन ने अप्रत्यक्ष तौर पर भारत को भारी तबाही झेलने की धमकी दी लेकिन भारत ने संकेत दिया कि वह धमकियों के आगे कभी नहीं झुकेगा।
90 अरब डालर का आपसी व्यापार
डोकलाम की घटना के बावजूद भारत और चीन के आला राजनीतिक नेतृत्व ने एक-दूसरे से कभी भी सम्पर्क नहीं तोड़ा। संवाद का सिलसिला जारी रहा। इस दौरान आर्थिक-व्यापारिक रिश्ते भी निरंतर गहरे होते रहे। दोनों देशों के बीच 90 अरब डालर का आपसी व्यापार है। हालांकि व्यापार का पलड़ा चीन के पक्ष में काफी झुका हुआ है।
दोनों देशों ने इसी साल आपसी राजनयिक रिश्तों की स्थापना की 70 वीं सालगिरह मनाने के लिये भारी तैयारियां की थीं और इसके लिये विभिन्न क्षेत्रों में रिश्तों को गहराई देने का संकल्प जाहिर किया था।
राजनयिक रिश्तों के 70वें साल में यदि दोनों देशों के बीच सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में कोई बड़ी झड़प हो जाती तो आपसी रिश्तों में इतना बड़ा घाव पैदा होता कि उसे चीन से भारत और दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में सम्भालना काफी मुश्किल हो जाता।
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