नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध देश में इतना बड़ा आंदोलन उठ खड़ा होगा, इसकी कल्पना नरेंद्र मोदी और अमित शाह को क्या, कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों को भी नहीं होगी। यदि अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया के छात्र भड़क उठे हैं तो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और देश के अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र भी इस क़ानून के विरुद्ध मैदान में उतर आए हैं।
नागरिकता क़ानून: हिंदुत्ववादी दिखने का शौक?
- विचार
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- 18 Dec, 2019

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में जोरदार विरोध हो रहा है। बीजेपी के इस क़दम ने अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे परस्पर-विरोधी देशों को तो एकजुट कर ही दिया है, भारत के लगभग सभी विरोधी दलों को, जो एक-दूसरे के जानी दुश्मन भी हैं, एक सांझा मंच भी प्रदान कर दिया है।
यह ठीक है कि देश के विपक्षी दल इस जनोत्थान से खुश हैं और वे इसे उकसा भी रहे हैं लेकिन हम इससे इनकार नहीं कर सकते कि यह आंदोलन स्वतःस्फूर्त है। बीजेपी की प्रतिक्रिया ऐसी है, जो इस आंदोलन में आग में घी का काम कर रही है।