केंद्र सरकार अब ऐसा क़ानून बनाने पर उतारू हो गई है, जो दिल्ली की केजरीवाल-सरकार को गूंगा और बहरा बनाकर ही छोड़ेगी। दिल्ली की यह सरकार अब ‘आप’ पार्टी की सरकार नहीं कहलाएगी। वह होगी, उप-राज्यपाल की सरकार यानी दिल्ली की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय के द्वारा नियुक्त अफसर की सरकार! दिल्ली की जनता का इससे बड़ा अपमान क्या होगा? यह तो वैसा ही हुआ, जैसा कि ब्रिटिश राज में होता था। लंदन में थोपे गए वायसराय को ही सरकार माना जाता था और तथाकथित मंत्रिमंडल तो सिर्फ़ हाथी के दांत की तरह होता था।
केजरीवाल ने अभी-अभी हुए उप-चुनाव और स्थानीय चुनाव में भी बीजेपी को पटकनी मार दी है। केजरीवाल की बढ़ती हुई लोकप्रियता से घबराकर केंद्र सरकार यह जो नया क़ानून ला रही है, वह बीजेपी की प्रतिष्ठा को पैंदे में बिठा देगा। पुदुचेरी में किरण बेदी और दिल्ली में उप-राज्यपालों ने स्थानीय सरकारों के साथ जैसा बर्ताव किया है, वह किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अशोभनीय है।
अब तक दिल्ली की विधानसभा सिर्फ़ तीन मामलों में क़ानून नहीं बना सकती थी— पुलिस, शांति-व्यवस्था और भूमि लेकिन अब हर क़ानून के लिए उसे उप-राज्यपाल से सहमति लेनी होगी। वह किसी भी विधेयक को क़ानून बनने से रोक सकता है।
इस नए विधेयक को लादते हुए केंद्र ने यह भी कहा है कि ये सब प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के 4 जुलाई 2018 के निर्णय के अनुसार ही किए गए हैं लेकिन यदि आप संविधान पीठ के उस निर्णय को पढ़ें तो आपको उन अफसरों की बुद्धि पर तरस आने लगेगा, जिन्होंने यह विधेयक तैयार किया है और गृहमंत्री को पकड़ा दिया है।
यह विधेयक उस फ़ैसले का सरासर उल्लंघन है। हो सकता है कि इस अविवेकपूर्ण विधेयक को लोकसभा पारित कर दे और इस पर समुचित बहस भी न हो लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इसे रद्द किए बिना नहीं रहेगा। देश में सबसे बड़ी अदालत तो जनता की अदालत होती है। दिल्ली की जनता की अदालत में बीजेपी ने ख़ुद को दंडित करवाने का पुख्ता इंतज़ाम कर लिया है।
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