कुछ समय पहले एक फ़िल्म आई थी – ‘हेराफेरी’। परेश रावल, अक्षय कुमार और दूसरे कलाकारों के साथ। उस फ़िल्म की सबसे ख़ास बात यह थी कि हर नया सीन, हर नया डॉयलाग और हर बार एंट्री करता नया कलाकार, एक नया कन्फ्यूजन पैदा करता था। इस सुपर हिट फ़िल्म की याद मुझे आज 68 दिनों के लॉकडाउन खुलने के बाद हुए अनलॉक के पहले दिन आ रही है। देश भर में कुल मिलाकर हर जगह फ़िल्म ‘हेराफेरी’ जैसा सीन महसूस किया जा सकता है, ख़ासतौर से उत्तर भारत के राज्यों में और सरकारों के स्तर पर। लगता है मानो राज्य सरकारों, मुख्यमंत्रियों और केन्द्र सरकार के बीच कोई कॉम्प्टीशन चल रहा है, कन्फ्यूजन पैदा करने को लेकर।
अनलॉक के नाम पर फ़िल्म ‘हेराफेरी’ चल रही है क्या? कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन!
- विचार
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- 1 Jun, 2020

राष्ट्रीय राजधानी और केन्द्र से चलने वाली दिल्ली भी बाहर के लोगों के लिए रास्ते बंद कर दें तो इसे क्या कहा जाएगा? दिल्ली में चलने वाले बहुत से अस्पताल या संस्थान केन्द्र सरकार के अधीन हैं तो क्या उनमें भी लोग अपना इलाज नहीं करा पाएँगे? क्या इससे ऐसा नहीं लगता है मानो राज्य सरकारों, मुख्यमंत्रियों और केन्द्र सरकार के बीच कोई कॉम्प्टीशन चल रहा है, कन्फ्यूजन पैदा करने को लेकर!
लॉकडाउन-4 जब 31 मई को ख़त्म होना तय सा था तब भी केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने शाम तक कोई तसवीर साफ़ नहीं की थी। फिर सिलसिला शुरू हुआ केन्द्र से लेकर डीएम तक। केन्द्र सरकार ने मुख्यमंत्रियों पर छोड़ दिया कि वे तय करेंगे किस तरह अनलॉक किया जाए और मुख्यमंत्रियों ने बहुत सी जगहों पर इसकी ज़िम्मेदारी डीएम यानी ज़िला प्रशासन पर छोड़ दी। सत्ता या प्रशासन का विकेन्द्रीकरण नहीं था, यह तो ज़िम्मेदारियों को एक-दूसरे पर टालने की रणनीति जैसी रही है। इसलिए आज सवेरे से ही कई राज्यों और ख़ासतौर से राज्यों की सीमाओं पर बहुत परेशानियों का सामना आम आदमी को करना पड़ा है।