उत्तर प्रदेश सरकार का 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करना विशुद्ध राजनीतिक खेल है। इन 17 जातियों में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, वाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ शामिल हैं। निश्चित रूप से यह राजनीतिक मामला है। इसकी शुरुआत अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने की थी, जिस पर कोर्ट ने अमल करने पर रोक लगा दी थी। उसके बाद मायावती ने भी अपनी सरकार में इन पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल किए जाने की सिफ़ारिश केंद्र सरकार से की थी।
ओबीसी से दलित: सिर्फ़ सियासी फायदा लेने की कोशिश
- विचार
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- 1 Jul, 2019

योगी सरकार का 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करना राजनीतिक स्वार्थ-सिद्धि के सिवा कुछ नहीं है।
ज़ाहिर है कि एसपी और बीएसपी ही नहीं, बीजेपी भी इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। इसलिए राजनीतिक स्तर पर इस फ़ैसले का विरोध कोई भी पार्टी नहीं करेगी। यह अलग बात है कि फिलहाल इसका श्रेय बीजेपी को मिलेगा और लाभ भी।