1992 में मैंने अपने सुलतानपुर प्रवास में एक कविता लिखी थी, “तब तुम्हारी निष्ठा क्या होती?’ उसे मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ को भेजा। उन दिनों वहाँ विष्णु खरे संपादक थे। उन्होंने उसे ‘नव भारत टाइम्स’ के 31 मार्च 1992 के रविवारीय अंक में प्रकाशित किया। उसे पढ़कर गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव और शिवमूर्ति जी मुझसे मिलने आए, जो उन दिनों सुलतानपुर में ही रहते थे। दलित बुद्धिजीवियों में वह कविता इतनी लोकप्रिय हुई कि उसकी सैकड़ों प्रतियाँ फोटोस्टेट कराकर बांटी गईं। आज के दौर में उस कविता को कोई अख़बार नहीं छाप सकता। यह अनुभव मैंने इसलिए साझा किया, क्योंकि आज रामचरितमानस पर दलित बुद्धिजीवियों को कुपढ़ बताया जा रहा है। नवभारत टाइम्स  में छपी उस लम्बी कविता की अंतिम पंक्तियाँ तुलसीदास की मानस पर हैं। ये पंक्तियाँ इस प्रकार हैं—