भारतीय जनता पार्टी को गठबंधन की राजनीति का चैंपियन माना जाता रहा है। ख़ुद बीजेपी ने भी कई मौक़ों पर अपने सहयोगी दलों के प्रति उदारता बरतते हुए इस बात को साबित भी किया है। इसी गठबंधन की राजनीति के बूते ही उसने दो दशक पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। उस समय उसकी अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का निर्माण हुआ था। क़रीब 25 छोटे-बड़े दलों का यह गठबंधन था।

बीजेपी का लक्ष्य किसी भी क़ीमत पर हर राज्य में अपनी सरकार बनाना है। इसलिए अरुणाचल प्रदेश का घटनाक्रम इस बात का भी संकेत है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में चौंकाने वाली घटनाओं के साथ बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
2004 के आम चुनाव में सत्ता से अलग हो जाने के बाद कई दलों ने अलग-अलग वजहों से इस गठबंधन से नाता तोड़ लिया। इसके बावजूद इसी गठबंधन के सहारे बीजेपी ने 2014 में पूर्ण बहुमत हासिल किया और नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनाई। उसने 2019 का चुनाव भी इसी गठबंधन का नेतृत्व करते हुए लड़ा। इस चुनाव में उसे अकेले ही जिस तरह की भारी-भरकम जीत मिली, जिसके चलते साफ़ दिख रहा है कि उसका अपने सहयोगी दलों के प्रति नज़रिया अब बदलने लगा है। उसे लग रहा है कि अब उसे देश में कहीं भी किसी सहयोगी की ज़रूरत नहीं रह गई है। इस सिलसिले में अरुणाचल प्रदेश का राजनीतिक घटनाक्रम ताज़ा मिसाल है।