प्रेम बुनियादी तौर पर मनुष्य को स्वाधीन बनाता है। प्रेम मनुष्य को अहम् जैसे विकारों से मुक्त करता है। प्रेम जोड़ने वाला भाव है। मनुष्य होने की प्रक्रिया है, प्रेम। प्रेम किसी भेदभाव को नहीं मानता। प्रेम की बुनियाद में समानता है। फिर आख़िर प्रेम से डर क्यों है? प्रेम करने वालों से नफ़रत क्यों है? प्रेम पर पाबंदी लगाकर हम कैसा समाज बनाने जा रहे हैं?