प्रेम बुनियादी तौर पर मनुष्य को स्वाधीन बनाता है। प्रेम मनुष्य को अहम् जैसे विकारों से मुक्त करता है। प्रेम जोड़ने वाला भाव है। मनुष्य होने की प्रक्रिया है, प्रेम। प्रेम किसी भेदभाव को नहीं मानता। प्रेम की बुनियाद में समानता है। फिर आख़िर प्रेम से डर क्यों है? प्रेम करने वालों से नफ़रत क्यों है? प्रेम पर पाबंदी लगाकर हम कैसा समाज बनाने जा रहे हैं?

लव जिहाद बीजेपी और हिंदुत्ववादी संगठनों का नया प्रोपेगेंडा है। लव जिहाद हिन्दुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने का नया पैंतरा है। इसीलिए योगी आदित्यनाथ सहित बीजेपी के कई नेता इसको आगे बढ़ा रहे हैं।
राजसत्ता, पितृसत्ता और धर्मसत्ता हमेशा प्रेम और प्रेम करने वालों के ख़िलाफ़ रही हैं। राजसत्ता द्वारा प्रेमियों को ज़िंदा दीवार में चुनवाने की अनेक दास्तानें हैं। पितृसत्ता ने इज्जत और मर्यादा के नाम पर विशेषकर स्त्रियों को ग़ुलाम बनाया है। उनके अहसासों और जज़्बातों पर बंदिशें लगाई हैं। धर्म और संस्कृति के स्वयंभू रक्षक हमेशा प्रेम पर पाबंदी लगाने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन प्रेम करने वालों ने हमेशा रूढ़ियों और बेड़ियों को ध्वस्त किया है। किसी भी सत्ता से निडर होकर लोग प्रेम करते रहे हैं। प्रेम जड़ समाज में सत्ताओं को हमेशा चुनौती देता रहा है। बेखौफ होकर उन्होंने मनुष्य बनने और प्रेम करने की सज़ा भी भुगती है। वास्तव में प्रेम ने समाज को मानवीय बनाने में एक साइलेंट रिवॉल्यूशन का काम किया है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।