"मुलायम सिंह को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी से ही नहीं बल्कि मीडिया के पक्षपाती रवैया और बीएसपी-बीजेपी गठजोड़ से भी टक्कर लेनी पड़ी है। बाबरी मसजिद ध्वंस के बाद पिछड़ा-मुसलमान एकता से दलितों को जोड़ने के मक़सद से मुलायम ने बसपा को साथ लेने का जोखिम उठाया था। उन्होंने कई बार झुकते हुए और राजनीतिक नुक़सान के बावजूद इस गठजोड़ को कायम रखने की कोशिश की। बीजेपी ने इसका लाभ उठाया और दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से बसपा को अपने साथ मिला लिया। इससे सबक सीखकर मुलायम ने नए फ़ॉर्मूले की तलाश की और अंततः उसे हासिल कर लिया।"