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महाबली नेतृत्व वाली बीजेपी ने आखिर मान ही लिया कि राहुल गांधी का प्रताप लगातार बढ़ रहा है और वे दशानन बन चुके हैं। दशानन का अर्थ दस सिर वाला नहीं होता बल्कि दशानन का अर्थ एक ही सिर वाले व्यक्ति के पास दिव्यदृष्टि का हो जाना भी होता है। बीजेपी ने गुरुवार को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर राहुल गांधी का एक पोस्टर जारी किया और उन्हें नए जमाने का रावण बताया। पार्टी ने लिखा- नए जमाने का रावण यहाँ है। वे दुष्ट, धर्म और राम विरोधी हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य देश को बर्बाद करना है।
मोदी युग में अपने प्रतिद्वंद्वी को रावण कहा जाना क़तई हैरानी की बात नहीं है। हैरानी की बात तो ये है कि भाजपा के विद्वान आईटी सेल वाले न राम को ठीक-ठीक जानते हैं और न रावण को। रावण के दस सिर माने जाते थे लेकिन भाजपा के रावण के 7 सिर ही हैं। त्रेता के राम ने कभी चाय नहीं बेची थी लेकिन भाजपा के राम चाय बेचते हुए रामलीला करने आये हैं। भाजपा के रावण के कोई भाई नहीं है जबकि त्रेता के रावण के पास कुंभकर्ण, विभीषण जैसे महाबली भाई थे। रावण की बहन सूर्पणखा अविवाहित थी, भाजपा के रावण की बहन न कुरूप है और न अविवाहित, वो दो बच्चों की मां है। उसे कोई भूले से भी सूर्पणखा नहीं कह सकता।
आपको बता दें कि सोरोस भाजपा सरकार की आँख की किरकिरी उसी तरह हैं जिस तरह की राहुल गांधी यानी राहुल रावण। सोरोस की संस्था ने 1999 में पहली बार भारत में एंट्री की। पहले ये भारत में रिसर्च करने वाले स्टूडेंट को स्कॉलरशिप देती थी।
2014 में ओपन सोसाइटी ने भारत में दवा, न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने और विकलांग लोगों को मदद करने वाली संस्थाओं को आर्थिक सहायता देना शुरू किया। 2016 में भारत सरकार ने देश में इस संस्था के जरिए होने वाली फंडिंग पर रोक लगा दी। भाजपा के अंगद यानी विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका के बिलेनियर कारोबारी जॉर्ज सोरोस को बूढ़ा, अमीर, जिद्दी और ख़तरनाक कह चुके हैं। जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया में कहा था- ऐसे लोगों को लगता है कि अगर उनकी पसंद का व्यक्ति चुनाव जीतता है, तो वो चुनाव अच्छा था, लेकिन अगर नतीजा कुछ और निकले तो वो देश के लोकतंत्र में खामियाँ ढूंढ़ने लगते हैं।
बहरहाल मैं भाजपा की आईटी सेल के इस सृजन से बहुत खुश हूँ क्योंकि इसमें मौलिकता है। राजनीति में मौलिकता का नितांत अभाव है। देश में अब रामलीलाएं लगातार कम हो रही हैं। ऐसे में सियासी लीला में राम और रावण की एन्ट्री सुखद है।
मैं तो सुझाव देना चाहूंगा कि इस साल दशहरे पर भाजपा पूरे देश में रावण की जगह राहुल रावण के पुतले जलाये। राहुल की नाभि में लोकप्रियता का जो अमृत कुंड है उसे किसी तीर से सोख ले ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। क्योंकि जब तक देश की राजनीति में राहुल मौजूद हैं वे भाजपा के लिए समस्या बने रहेंगे। मुमकिन है कि उनके रहने से भाजपा का 2047 तक सत्ता में रहने का सपना भी चकनाचूर हो जाये। क्योंकि राहुल रावण की सेना लगातार एक के बाद एक मोर्चा फतह करती जा रही है। राहुल रावण की फ़ौज देश को कांग्रेस विहीन करने के भाजपा के महा अभियान का सबसे बड़ा रोड़ा हैं।
राहुल को रावण बताना मानहानि का मुद्दा है या नहीं ये वकील जानें। मैं तो इतना जानता हूँ कि भाजपा के सिर पर राहुल पहले केवल भूत बनकर सवार थे और अब रावण बनकर सवार हैं। राहुल को रावण बताना राहुल का अपमान है या कांग्रेस का या खुद रावण की बिरादरी वालों का, ये तय करना जनता का काम है और जनता नवंबर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसका उत्तर ज़रूर देगी। 2024 में होने वाले आम चुनाव में ये तय हो जाएगा कि देश की राजनीति में कौन रावण है और कौन राम? आप तो केवल सियासत की छुद्र रामलीला देखते जाइये। दृश्य अभी और भी हैं।
(राकेश अचल फ़ेसबुक पेज से)
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