आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह भी जेल यात्रा पर निकल गए। केंद्र सरकार की 'न खाऊंगा और न खाने दूंगा' योजना के तहत संजय सिंह को बीती रात प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया। प्रवर्तन निदेशालय की सहोदर सीबीआई पहले ही संजय सिंह के साथी मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन को जेल यात्रा पर भेज चुकी है। सरकार की नजर में ये तीनों 'महाखाऊ' हैं और न जाने कितना खा चुके हैं।
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की सेहत पर अपने साथियों की गिरफ्तारी से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे अब पहले से ज्यादा तंदरुस्त नजर आने लगे हैं। जब-जब उनका कोई साथी जेल जाता है, केजरीवाल की सेहत सुधर जाती है। संजय सिंह को जेल जाना ही था, संजय ने अपनी जेल यात्रा का इंतजाम खुद किया।
संजय लगातार सरकार के लिए संसद में समस्या खड़ी कर रहे थे। हमारे उदार 'सदनप्रभु' ने संजय को पहले ही सदन से निलंबित कर दिया था। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सिफारिश के बावजूद संजय को बहाल नहीं किया गया। संजय सदन के बाहर धूनी रमाये बैठे रहे। आम आदमी पार्टी का ख्याल सबसे ज्यादा सरकार ही रखती है। संजय के प्रति हमारी सहानुभूति इसलिए भी है क्योंकि वे एक मुखर सांसद हैं। वे जनता की आवाज़ को मुखर बनाने के लिए कांग्रेसियों से ज्यादा प्रभावी और मौलिक नारे गढ़ते हैं। उनकी आवाज़ भी डॉ. मनोज झा की तरह बुलंद है और संसद की दीवारों से टकराकर प्रतिध्वनि करती है अर्थात गूंजती है। ध्वनि से ज्यादा प्रतिध्वनि का असर होता है। इसे अंग्रेजी वाले 'ईको' कहते हैं। तेज आवाज में बोलने वालों की वजह से संसद का 'ईको सिस्टम' खराब होता है। इसलिए सदन के नेता कोशिश करते हैं कि तेज आवाज में बोलने वाले सांसदों को काबू में रखा जाये। वे न मानें तो उन्हें निलंबित कर दिया जाय। यानी 'न रहे बांस और न बजे बांसुरी।'
सरकार संस्कारित और सनातनी सरकार है। उसे मालूम है- “न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी।” इसीलिए जहाँ जहाँ ज्यादा तेल नजर आता है सरकार उसे कम करा देती है। ये फॉर्मूला प्रामाणिक फॉर्मूला है। यही वजह है कि इसे न केवल सांसदों पर बल्कि पत्रकारों और वेब साइटों पर भी आजमाया जा रहा है।
सरकार को कांग्रेस का आभारी होना चाहिए। हमारी सरकार ने हाल ही में उज्ज्वला योजना वालों के लिए रसोई गैस के सिलेंडर पर सब्सिडी बढ़ाई लेकिन इस लोकोपयोगी घोषणा का डंका बज ही नहीं पाया। उज्ज्वला बहनों को मिले इस उपहार को न्यूज़क्लिक और संजय सिंह ले डूबे।
ये दोनों सरकार विरोधी काम करते हैं। आप इसे राष्ट्रविरोधी भी मान सकते हैं। न्यूज़क्लिक वाले चीन से पैसे लेकर भारत सरकार के ख़िलाफ़ काम करते हैं, जबकि इस पर खुद भारत सरकार का एकाधिकार है। भारत सरकार 'पीएम केयर फंड' के लिए चीन से धन ले सकती है लेकिन न्यूज़क्लिक वाले नहीं। न्यूज़क्लिक वाले लेंगे तो उन्हें 'किक' कर दिया जायेगा। किया जा रहा है। सरकार खुद चीनी पैसे से चलने वाले 'पेटीएम' का विज्ञापन कर सकती है लेकिन आपको चीनी धन का इस्तेमाल नहीं करने दे सकती। ये सरकार की प्रतिष्ठा के खिलाफ है। सरकार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए ही ईडी को मेहनत करनी पड़ती है।
बेचारी ईडी! मुफ्त में बदनाम हो रही है। आप मानें या न मानें मुझे तो अपनी ईडी और सीबीआई पर बहुत दया आती है। दोनों मन मारकर काम करते हैं। राष्ट्रहित की बात न होती तो ये दोनों एक भी आदमी को गिरफ्तार न करते, फिर चाहे वो मनीष सिसोदिया होते या संजय सिंह या केरल वाले कप्पन मियाँ। ईडी और सीबीआई पहले भी थे लेकिन इतने निरीह और नख-दंतहीन नहीं थे। अब तो दोनों की दशा कठपुतलियों जैसी हो गयी है। दोनों की डोर किसी और के हाथों में है जो उन्हें अपने स्टाइल में नचाता रहता है। जिसे बचाना होता है उसे बचाता रहता है। जिसे देश के बाहर भगाना होता है, भगाता रहता है। न उनका ईडी कुछ बिगाड़ पाती है और सीबीआई।
मुझे मेरे एक सांसद मित्र ने बताया कि ईडी और सीबीआई से बचने का एक स्रोत्र है। बिलकुल रामरक्षा स्रोत्र की तरह काम करता है। आप जी भर कर खाइये, खिलाइये केवल आपके हाथों में लक्ष्मी देवी की भांति कमल पुष्प होना चाहिए। जिसके हाथ में कमल पुष्प होता है उसे लक्ष्मी जी का वरदान मानकर अक्षुण्ण समझ लिया जाता है। कमल पुष्प प्रेमी को ईडी और सीबीआई सपने में भी पूछताछ के लिए नहीं बुला सकती, गिरफ्तारी तो बहुत दूर की बात है! आप ईडी और सीबीआई का रोजनामचा उठाकर देख लीजिये, एक भी कमल पुष्पधारी नेता, पत्रकार या समाजसेवी आपनी जेलयात्रा पर जाता नहीं दिखाई देगा। कमल पुष्प सरकार की तमाम गारंटियों में से एक गारंटी जैसा है। मेरी मानिये तो आप भी अपने यहां एक गढ्ढा बनाकर उसमें कमल की क्यारी बना लें। अपनी आदत से मजबूर होने की वजह से मैं संजय सिंह की गिरफ्तारी का समर्थन नहीं कर सकता। मैं न्यूज़क्लिक के खिलाफ की जा रही कार्रवाई के भी खिलाफ हूँ। मैं इन दोनों कार्रवाइयों को अलोकतांत्रिक मानता हूँ।
किसी भी तंत्र में इस तरह की कार्रवाइयाँ नहीं होनी चाहिए। लेकिन मेरी सुनता कौन है? नक्कारखाने में भला तूतियों की आवाज सुनाई देती है? फिर भी तूतियाँ हैं कि बजती रहती हैं, लगातार बजती रहती हैं। आपातकाल में भी बजती थीं। आज भी बज रही हैं। कल भी बजेंगी। तूतियां अपना काम बंद नहीं करतीं। वे हर नक्कारखाने में बजती हैं फिर चाहे नक्कारखाना सांपनाथ का हो या नागनाथ का।
(राकेश अचल फ़ेसबुक पेज से)
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