इस समय जो हम देश भर में देख रहे हैं वह एक दिन या एक साल में नहीं हुआ है। वर्षों से भीतर ही भीतर यह हो रहा था। आज़ादी के पहले अंग्रेजों ने ‘बांटो और शासन करो’ की नीति पर चलते हुए दोनों समुदायों के बीच गहरी खाई खोद दी जिसके नतीजे में विभाजन के समय 16 लाख बेगुनाह लोगों की जान चली गई। लेकिन उसके बाद लगा कि देश में सौहार्द्र की भावना आ गई है और दोनों समुदायों में वैमनस्य ख़त्म हो गया है। कुछ साल अच्छे बीते लेकिन फिर संकीर्ण राजनीति घुसने लगी।
शक की दीवार और ऊँची हो गई है
- विचार
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- 12 Jun, 2022

देश में जो आज नफ़रत के हालात बने हैं उसकी वजह क्या है? क्या यह सिर्फ़ 1, 2, 5 या 8 वर्षों ेमें हुआ है? क्या अब उन हालात में सुधार की गुंजाइश है?
मुसलमानों के मन में भय भरा जाने लगा कि कट्टर हिन्दू तुम्हें चैन से रहने नहीं देंगे। उन्हें हिन्दू महासभा या फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भय दिखाया जाने लगा। दरअसल आज़ादी के पहले से ही कांग्रेस यह प्रचार कर रही थी। उनके इसी प्रचार ने दोनों समुदायों के बीच शक की दीवार खड़ी करनी शुरू की। कांग्रेस के बाद क्षेत्रीय दलों- द्रमुक, सपा, राजद, बसपा, एनसीपी और बाद में तृणमूल में इस बात की होड़ लग गई कि मुसलमानों का असली खैरख्वाह कौन है। सबने उन्हें भर-भर कर डराया और चुपके से सत्ता हथिया ली।