तो क्या नागरिकता क़ानून और एनआरसी मोदी-शाह के काम नहीं आया? क्या झारखंड की जनता ने बीजेपी की राष्ट्रवाद-हिंदुत्व की नीति को नकार दिया है? क्या आर्थिक मसले चुनावों में ज़्यादा हावी हो रहे हैं? क्या बीजेपी के नेताओं का अहंकार ले डूबा?

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के मुद्दे को जनता क्या स्वीकार कर रही है? पिछले छह महीने में मोदी सरकार ने हिंदुत्व के एजेंडे को काफ़ी गति से लागू किया है। तीन तलाक़ पर तमाम विरोध को दरकिनार कर संसद से पास करा क़ानून बना दिया गया। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया तो बीजेपी ने भारी जोश से इसे अपनी जीत के तौर पर पेश किया। तो अब प्रधानमंत्री के सामने विकल्प क्या हैं?
झारखंड के चुनावों में बीजेपी ने मुँह की खायी। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन की जीत बीजेपी के लिए एक तगड़ा झटका है। यह हार तब और महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब इसको लोकसभा के संदर्भ में देखते हैं। बीजेपी गठबंधन को मई में 14 में से 12 सीटों पर विजय मिली थी। बीजेपी को पचास फ़ीसदी से अधिक वोट मिले थे। ऐसे में ये अचानक क्या हो गया कि बीजेपी हार गयी? लोकसभा की जीत विधानसभा में क्यों रूपांतरित नहीं हो पायी?
ऐसा पहली बार नहीं कि बीजेपी विधानसभा में हारी है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी तीन बड़े राज्य- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हारी थी और निहायत कमज़ोर कही जाने वाली कांग्रेस जीती। लोकसभा में बंपर जीत के बाद भी बीजेपी हरियाणा में बहुमत नहीं ला पायी। महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत प्रदर्शन ख़राब रहा। और अब झारखंड।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।