यह कहना अभी मुश्किल होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिमाग में क्या चल रहा होगा? नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जो ग़ुस्सा सड़कों पर दिखा उसकी तासीर पर वह कितने चिंतित होंगे? या फिर चिंतित भी होंगे या नहीं? सड़कों पर उतरे लोगों के आक्रोश में भी वह अपना फ़ायदा देख रहे हैं या फिर उन्हें लग रहा है कि कहीं यह ग़ुस्सा देश का मूड न बदल दे?