यह बनारस को क्या हो गया है? फ़िरोज़ ख़ान का प्रकरण बनारस की आत्मा में पल रहे घाव सरीखा है। यह बनारस की आत्मा पर चोट करने जैसा है। जिस बनारस में कोई डेढ़ सौ साल पहले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने यह एलान किया हो- ‘इन मुसलमान हरिजनन पे कोटिन हिंदुन वारिए,’ वहाँ फ़िरोज़ खान के संस्कृत पढ़ाने का विरोध अगर हमारी सांस्कृतिक दरिद्रता नहीं तो और क्या है? भारतेन्दु परम वैष्णव थे। फिर भी उन्होंने रहीम, रसखान और दारा शिकोह जैसे मुसलमानों के कृतित्व पर करोड़ों हिन्दू न्योछावर करने की बात कर दी। आख़िर क्यों ऐसी महान सांस्कृतिक विरासत वाले बनारस में एक फ़िरोज़ ख़ान के संस्कृत पढ़ाने से हिन्दू कर्मकांड या धर्म ख़तरे में पड़ रहा है? संस्कृत नष्ट हुई जा रही है? आख़िर कौन हैं ये बनारस की तसवीर बिगाड़ने वाले? महादेव की नगरी के खांटी समरस और मंगलकारी चरित्र पर सवालिया निशान लगाने वाले? संस्कृत को चोट पहुँचाने वाले? संस्कृति को नष्ट करने वाले? क्या इस जघन्य अपराध का प्रायश्चित हो सकेगा?