आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भारत का विचार गहरे मंथन से गुजर रहा है। एक ओर तो वह विचार है जिसे फिराक साहब ने कुछ इस तरह व्यक्त किया हैः---
अमृत महोत्सव: आज़ादी का अमृत तो गांधी के रास्ते ही निकलेगा!
- विचार
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- 31 Aug, 2022

आजादी का अमृत महोत्सव तभी साकार हो सकता है जब हम महात्मा गांधी और भारत के तमाम मनीषियों के बताए हुए रास्ते पर चलें।
सर जमीन-ए-हिंद पर अक्वामे आलम के फिराक
काफिले आते रहे और हिन्दुस्तां बनता गया
यानी भारत ने किसी को पराया माना ही नहीं। जो भी यहां आया यहां का होकर रह गया। न तो बाहर से आने वालों ने यहां पहले से रह रहे लोगों का सफाया किया और न ही यहां पहले से बसे लोगों ने बाहर से आए लोगों को लंबे समय तक परदेसी माना। परदेसी उन्हें जरूर माना गया जो शासन यहां करते थे और तिजोरी किसी और देश की भरते थे। चाहे वे विदेशी लुटेरे रहे हों या फिर विदेशी फरमानों और सेनाओं के बल पर यहां शासन कर रहे अंग्रेज और दूसरे यूरोपीय लोग हों। यही कारण है कि भारत ने मुट्ठी भर (60 हजार से एक लाख तक की संख्या वाले) अंग्रेजों को परदेसी माना और उन्हें यह देश छोड़कर जाने को मजबूर कर दिया। लेकिन एक बात ध्यान रहे कि भारत की आजादी की लड़ाई के अग्रणी नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अंग्रेजों से घृणा के कतई हिमायती नहीं थे।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।