साल 2004 के चुनावों से पहले ‘शाइनिंग इंडिया’ यात्रा के दौरान उस दौड़ते एयरकंडीशंड रथ में मैं बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी का इंटरव्यू कर रहा था। सवाल था कि पूरे जीवन में आप किसे अपना इकलौता मित्र कहेंगे। बिना एक क्षण रुके आडवाणी ने कहा, ‘वाजपेयी जी!’ फिर रुक कर बोले, ‘वाजपेयी जी मेरे मित्र ही नहीं हैं, मेरे गाईड भी हैं, मेरे नेता भी हैं। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और मुझे अब भी इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है कि मैं उन जैसा भाषण नहीं दे सकता। वाजपेयी जितना लोकप्रिय नेता कोई दूसरा नहीं है।’
वाजपेयी की जगह आडवाणी को पीएम क्यों बनाना चाहता था संघ?
- विचार
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- 16 Aug, 2021

1998-99 की बात है जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। तब आडवाणी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की बात आई। वेंकैया नायडू संघ का यह प्रस्ताव लेकर अटल जी के पास गए थे, तो अटल जी ने अपनी स्टाइल में कहा कि यह संभव नहीं है। वाजपेयी तब आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बना कर सत्ता के दो केन्द्र नहीं बनाना चाहते थे।
मैंने सवाल किया, ‘इतने लंबे वक्त तक ये दोस्ती चलने का राज़ और क्या कभी कोई मतभेद नहीं हुए?’ आडवाणी ने कहा, ‘एक दूसरे के प्रति सम्मान और विश्वास। वाजपेयी जी ने मुझ पर हमेशा भरोसा किया है और मुझे लगता है कि यह हमारा सौभाग्य है कि हमें वाजपेयी जैसा व्यक्तित्व नेतृत्व के तौर पर मिला लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम दोनों के बीच कभी किसी मुद्दे पर मतभेद नहीं हुए हों। मतभेद रहे लेकिन मनभेद नहीं हुआ कभी और वाजपेयी हमेशा दूसरों के मन की बात को और पार्टी के फ़ैसले को सर्वोपरि रखते रहे।’