26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय के लिए जिस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए थे, उस में यह शर्त थी कि जम्मू-कश्मीर विलय के बाद भारतीय संघ का एक घटक राज्य होते हुए भी ‘स्वायत्त’ रहेगा। उस शर्त के मुताबिक़ ही भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 डाला गया जिसमें राज्य की ‘स्वायत्तता’ के साथ-साथ इस बात की भी गारंटी थी कि यह अनुच्छेद तब तक संविधान में बना रहेगा जब तक जम्मू-कश्मीर राज्य की संविधान सभा इसे ख़त्म करने की सिफ़ारिश न करे।
अनुच्छेद 370 के खंड 3 में लिखा है -इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही और ऐसी तारीख़ से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे:
परंतु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफ़ारिश आवश्यक होगी।
अनुच्छेद 370 का अंत, एक रास्ता आधा खुला, दूसरा पूरा बंद
- विचार
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- 10 Jul, 2019

अनुच्छेद 370 पर विशेष : पिछले 69 सालों में अनुच्छेद 370 एक ऐसा शेर बनकर रह गया है जिसके दाँत और नाखून निकाल लिए गए हैं। लेकिन कुछ ताक़तें हैं जो चाहती हैं कि इस नखदंतविहीन शेर का भी अस्तित्व न रहे। परंतु उनकी समस्या यह है कि भारतीय संविधान में इस शेर की हत्या का कोई प्रावधान नहीं है। उसको केवल दयामृत्यु दी जा सकती है लेकिन वह भी तब जब राज्य की संविधान सभा इसकी इजाज़त दे। परंतु संविधान सभा तो जनवरी 1957 में विसर्जित हो गई। फिर अनुमति कौन देगा? प्रस्तुत है कश्मीर सीरीज़ की छठी और आख़िरी किस्त।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश