2024 का लोकसभा चुनाव आज़ादी के बाद का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण चुनाव है। यह प्रजातंत्र और संविधान को बचाने का चुनाव है। पिछले 10 साल में हिन्दुत्ववादी दक्षिणपंथी सत्ता ने भारत की अस्मिता और उसकी सांस्कृतिक विरासत को लहूलुहान किया है। आरएसएस और उसके हजारों हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अपने भाषणों और कृत्यों से भारत की आत्मा को कुचल डाला है। आज़ादी के समय देश की जो परिस्थितियां थीं, आज वही स्थितियां बना दी गई हैं। स्वाधीनता आंदोलन में हिंदू महासभा के द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत और मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति ने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि आजादी के साथ भारत को विभाजन झेलना पड़ा। विभाजन के दरमियान हुई सांप्रदायिक हिंसा और अमानवीयता ने भारत की स्वतंत्रता पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। चर्चिल जैसे यूरोपीय नेता नवनिर्मित भारतीय राष्ट्र के टूटने की भविष्यवाणी कर रहे थे। लेकिन गांधी के मार्गदर्शन, नेहरू के दूरदर्शी चिंतन और डॉ. आंबेडकर के सामाजिक न्याय ने देश की नींव को मज़बूत बनाकर खड़ा किया। तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए वैचारिक दरारों के बावजूद अगर भारत आज भी मज़बूती से खड़ा हुआ है तो उसकी बुनियाद भारत का संविधान है।

जान स्टुअर्ट मिल को उद्धृत करते हुए चेतावनी भरे अंदाज में आंबेडकर ने कहा था, "अपनी स्वतंत्रता को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें या उस पर विश्वास करके उसे इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें कि वह संस्थाओं को नष्ट करने में समर्थ हो जाए।"
मोदी सरकार के 10 सालों में भारत के संविधान पर सबसे ज्यादा हमला किया गया। डॉ. आंबेडकर भारतीय राष्ट्र और संविधान की चुनौतियों से अवगत थे। बाबा साहब संविधान निर्माण से लेकर अपने जीवन के अंतिम समय तक लगातार लोकतंत्र और संविधान की चिंता करते रहे। उन्होंने संविधान सभा के अंतिम भाषण में उन चुनौतियों और आशंकाओं को सूत्रबद्ध किया। संविधान सभा में क़रीब 50 मिनट तक दिए गए इस भाषण की तमाम खूबियां हैं। दुर्योग से इस भाषण की चर्चा अगले 50 साल तक लगभग न के बराबर हुई।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।