डॉ भीम राव अंबेडकर ने कभी किसी तीर्थ की यात्रा की थी? यह सवाल आपको चौंका सकता है। लेकिन, यह प्रश्न पूछना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर उत्तर ‘हां’ में है तो मोदी सरकार का डॉ अंबेडकर के नाम से ‘पंचतीर्थ’की सोच भी पवित्र मानी जाएगी। अगर उत्तर ‘ना’ में है तो एक और सवाल खड़ा होगा कि जिन्होंने धार्मिक तीर्थ यात्राओं को कभी स्वीकार नहीं किया, उनके नाम से तीर्थ या पंचतीर्थ स्थापित करना उनका सम्मान है या उनके विचारों की अवमानना?
तीर्थ स्थलों में सिमट कर नहीं रह सकते बाबा साहेब अंबेडकर
- विचार
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- 26 Sep, 2022

डॉ अंबेडकर अखण्ड भारत के वैश्विक नेता थे। क्या बाबा साहेब के विचारों से छुआछूत की जा रही है और उनकी लोकप्रियता का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है।
एक संदर्भ की याद दिलाना जरूरी है। श्रीमती रमाबाई अंबेडकर महाराष्ट्र में पंढरपुर की तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती थीं लेकिन पति डॉ भीमराव अंबेडकर इसके लिए तैयार नहीं हुए। जाहिर है कि हिन्दू धर्म में प्रचलित तीर्थ यात्रा को वे स्वीकार नहीं करते थे। लेकिन, जब अंबेडकर ने पंढरपुर तीर्थ यात्रा से मना करने के बाद अपनी पत्नी रमा अंबेडकर को बताया कि वे उनके लिए नया पंढरपुर बना देना चाहते हैं जहां छुआछूत ना हो, तो संकेत मिलता है कि डॉ अंबेडकर के लिए तीर्थ यात्रा से ज्यादा महत्व आत्मसम्मान का था।
दलितों के लिए आत्मसम्मान का सवाल आज भी महत्वपूर्ण है। इसी नजरिए से अंबेडकर सर्किट की भी समीक्षा होनी चाहिए। जब सरकार खुद कह रही है कि पर्यटकीय नजरिए से डॉ अंबेडकर से जुड़ी स्मृतियों वाली पांच प्रमुख जगहों को जोड़ते हुए वह पंचतीर्थ का विकास कर रही है तो प्राथमिकता में पर्यटन है ना कि डॉ भीम राव अंबेडकर?