loader
प्रतीकात्मक तसवीर।

अल्पसंख्यक दलितों के लिए क्यों उमड़ा है प्रेम?

केंद्र सरकार ने हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म से इतर अन्य धर्मों के दलितों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का पता लगाने का इरादा जताया है और इस बाबत सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है। इस ख़बर ने देश की सियासत में दलितों के इस्तेमाल की नयी संभावना या आशंका पर नया विमर्श छेड़ दिया है।

लोग जानना चाहते हैं कि आखिर केन्द्र सरकार मुस्लिम, ईसाई, यहूदी, पारसी जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के दलितों की स्थिति जानने की विशेष कोशिश क्यों कर रही है और इसका भारतीय सियासत पर क्या असर पड़ने वाला है। चंद महत्वपूर्ण सवाल हैं जिन पर गौर करना जरूरी हो जाता है और यहीं से विमर्श आगे बढ़ता है- 

  • ​क्या वाकई गैर हिन्दू, गैर बौद्ध और गैर सिख दलितों का भला करना चाहती है सरकार?
  • बीजेपी की घोषित नीति अल्पसंख्यकों के दलित समुदाय को आरक्षण देने के ख़िलाफ़ रही थी लेकिन क्या अब इसमें बदलाव आया है?
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों में दलितों की वर्तमान दशा को जानने के पीछे कोई और मंशा तो नहीं?
  • आरक्षण के लाभुक दलित समुदाय के हितों को क्या इससे नुक़सान होगा? इस वर्ग की प्रतिक्रिया क्या रहने वाली है?
ताज़ा ख़बरें

‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे बुलंद करती रही बीजीपी सरकार पर मुसलमानों की अनदेखी के आरोप लगते रहे हैं। उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व से दूर रखने के आरोप तो तथ्यात्मक हैं। धार्मिक अल्पसंख्यक के दलित भी उसी श्रेणी में आते हैं जिनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व की सोच बीजेपी नहीं रखती। लेकिन, क्या उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक दशा को सुधारने की सोच लेकर बीजेपी सरकार ने ताजा पहल की है?

अल्पसंख्यक वर्ग के दलितों के हालात का अध्ययन यह साफ़ करेगा कि उन्हें आरक्षण की ज़रूरत है या नहीं। धर्म बदलने से हालात में भी बदलाव हुआ है, ऐसा संदेश समाज में है। मगर, धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के दलितों के हालात इतने बदल गये हैं कि उऩ्हें आरक्षण की आवश्यकता नहीं होगी- ऐसा विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि मुकम्मल अध्ययन के बाद आरक्षित वर्ग के दलितों को तैयार रहना चाहिए कि इस वर्ग का विस्तार धर्म से परे अल्पसंख्यक वर्ग में भी होना निश्चित है।

भारत में हिन्दू, सिख और बौद्ध की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 81.04 फ़ीसदी है। शेष अल्पसंख्यक वर्ग की आबादी 18.96 फ़ीसदी है। इनमें मुसलमानों की आबादी 14.01 फ़ीसदी है। पसमंदा मुसलमान 90 फ़ीसदी हैं। जाहिर है पसमंदा मुसलमानों को भी एससी वर्ग में शामिल करने की मांग उठेगी। यह ध्यान देने योग्य बात है कि यह वह वर्ग नहीं है जो हिन्दू दलित थे और धर्म परिवर्तन के कारण अल्पसंख्यकों में शुमार कर लिए गये और जिन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित होना पड़ा। 

हालाँकि अभी केंद्र सरकार केवल धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक वर्ग में दलित समूह के अध्ययन की बात कह रही है। मोटे तौर पर उन दलितों पर फोकस है जिन्होंने धर्म बदला है।

बड़ा सवाल है कि केंद्र सरकार धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक वर्ग के जिन दलितों को पहचानने और उनकी स्थिति जानने की कोशिश कर रही है क्या उन्हें खुद उन धर्मों ने पहचाना है? उदाहरण के लिए ईसाई धर्म शिक्षा को लेकर किसी अन्य धर्म की अपेक्षा अधिक गंभीर दिखता है। देश में हजारों की तादाद में मिशनरीज स्कूल चल रहे हैं। अगर ईसाई धर्म ने धर्मांतरण के बाद आए दलितों की पहचान की है और उनकी शिक्षा-दीक्षा का विशेष प्रबंध किया है तो उनके शैक्षणिक और सामाजिक हालात सुधर चुके होंगे और जाहिर है कि आर्थिक हालात भी। अध्ययन से ही इस बात की पुष्टि हो सकेगी। 

बड़ा सवाल यह है कि क्या ईसाई धर्म में छुआछूत है? इसी तरह दूसरे अल्पसंख्यकों में भी क्या छुआछूत को मान्यता मिली हुई है? उत्तर मिलेगा- नहीं। ‘अछूत’ का फैक्टर अगर हटा लें तो दलितों को आरक्षण का सबसे मजबूत आधार खत्म हो जाता है। सैद्धांतिक तौर पर जब तक ‘अछूत’ का व्यवहार है तब तक आरक्षण का औचित्य है।

विश्लेषण से ख़ास

अगर यह मान लें कि अल्पसंख्यक वर्ग में भी छुआछूत है और धर्मांतरित दलित भी इसका शिकार हैं तो एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि इन अल्पसंख्यक वर्ग ने इस छुआछूत की पहचान तक क्यों नहीं की? छुआछूत को खत्म करने के लिए अब तक कोई पहल तक क्यों नहीं की? कम से कम एक प्रतिबद्धता तो इस मक़सद से दिखनी चाहिए थी।

हिन्दुओं में छुआछूत बरकरार होने के बावजूद इस कुप्रथा से लड़ाई का संकल्प दिखता है। चिंता इस लड़ाई को मजबूत करने और दलितों को सामान्य वर्ग के बराबर ला खड़ा करने की है। मगर, अल्पसंख्यक वर्ग में यह लड़ाई अभी शुरू भी नहीं हुई है। इसके पीछे जिम्मेदार स्वयं अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े धर्म हैं। प्रश्न यह भी है कि क्या इसकी सज़ा उस वर्ग को दी जानी चाहिए जो वास्तव में दलित तो हैं लेकिन दलित के रूप में उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया गया है और उसकी वजह भी धार्मिक है?

ख़ास ख़बरें

हम इस बात को भी नहीं भूल सकते कि धर्म बदलते ही दलितों का ‘उद्धार’ हो जाने को संवैधानिक, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक मान्यता मिली हुई है! जबकि, हक़ीकत यह है कि हिन्दू से इतर धर्म में दलितों को दलित के रूप में पहचाना तक नहीं जाता। ऐसा करके उनका भला किया जाता है या फिर उन्हें संविधान में प्रदत्त आरक्षण के अधिकार से वंचित किया जाता है- यह विचारणीय विषय है।

हिन्दू धर्म छोड़ चुके दलितों के लिए बीजेपी की राजनीतिक सोच में आया बदलाव राजनीतिक स्वार्थ के तहत है या वास्तव में वे वाजिब चिंता कर रहे हैं- इस पर भी आने वाले समय में सबकी नज़र रहेगी। ऐसा भी हो सकता है कि अल्पसंख्यक वर्ग के दलितों में अपने लिए समर्थन पैदा करने का राजनीतिक मक़सद हो। इसके साथ-साथ दलित सियासत से जुड़े लोगों में इस विषय पर धार्मिक आधार पर मतभेद करने का राजनीतिक लक्ष्य भी हो सकता है। इस विषय पर विमर्श अभी जारी है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अशोक भारती /प्रेम कुमार
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें