बेशक़ सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने बाबरी मसजिद विध्वंस मामले में सभी 32 अभियुक्तों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है लेकिन जिस तरीक़े से इतने बड़े ऐतिहासिक सच का अदालत में दिवाला पिटा है उसके लिए अकेले अभियोजन पक्ष (सीबीआई) को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। यह वस्तुतः समूचे न्यायिक तंत्र की शर्मनाक असफलता का द्योतक है।
बाबरी विध्वंस के लिये ज़िम्मेदार तो नरसिंहराव भी थे, क्या वो भी बरी हो गये?
- विचार
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- 30 Sep, 2020

बाबरी मसजिद ध्वंस मामले में सभी अभियुक्त बरी हो गए हैं। इस फ़ैसले ने उन तमाम लोगों को भले ही बरी कर दिया हो जिन्हें सारी दुनिया ने सालों-साल 'मसजिद' के ध्वंस की कोशिशों में मशगूल रहते अपनी आँखों से देखा, लेकिन इस फ़ैसले ने भारतीय न्यायिक पद्धति को आने वाले समय के लिए अन्याय के गहरे कूप में धकेल दिया है, इससे कौन इंकार कर सकता है।
28 साल की लम्बी छानबीन में अभियोजन ने अदालत के सामने लगभग 40 हज़ार मौखिक तथा भौतिक साक्ष्य तैयार किए जिसके चलते 1026 गवाहों को समन भेजे गए और अंततः 351 लोग कोर्ट में गवाही के लिए हाज़िर हुए। चूँकि इन गवाहों में काफ़ी तादाद प्रिंट और टीवी पत्रकारों की भी थी, उनमें से ज़्यादातर का यह कहना है कि उनकी गवाही के दौरान जहाँ सीबीआई के एक या दो वकील अभियोजन की तरफ़ से उनके बयान करवाने की कोशिश करते थे वहीं डिफेन्स की तरफ़ से दर्जनों वकील इन गवाहों पर टूट पड़ते थे और इन्हें हर तरफ़ से 'होस्टाइल' करने की कोशिश होती जबकि वे वही बोल रहे होते थे जो दृश्य रिपोर्टिंग के दौरान उनकी आँखों के सामने से गुज़रे थे।