पच्चीस जून, 1975 का दिन। पैंतालीस साल पहले। देश में ‘आपातकाल’ लग चुका था। हम लोग उस समय ‘इंडियन एक्सप्रेस’ समूह की नई दिल्ली में बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग स्थित बिल्डिंग में सुबह के बाद से ही जमा होने लगे थे। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या होने वाला है। प्रेस सेंसरशिप भी लागू हो चुकी थी। इंडियन एक्सप्रेस समूह तब सरकार के मुख्य निशाने पर था। उसके प्रमुख रामनाथ गोयनका इंदिरा गाँधी से टक्कर ले रहे थे। वह जे पी के नज़दीकी लोगों में एक थे।
25 जून 1975: जब काग़ज़ के पुर्ज़े ही क़ीमती स्मृति चिन्ह बन जाते हैं!
- विचार
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- 24 Jun, 2020

पिछले साढ़े चार दशक से जे पी की नज़रबंदी के आदेश की फ़ोटो को सहेजे हुए हूँ। इस बीच कई काम, मालिक, शहर और मकान बदल गए पर जो कुछ काग़ज़ तमाम यात्राओं में बटोरे गए वे कभी साथ छोड़कर नहीं गए। बीता हुआ याद करने के लिए जब लोग कम होते जाते हैं, ये काग़ज़ के क़ीमती पुर्ज़े ही स्मृतियों को सहारा और साँसें देते हैं।