मिज़ोरम के ब्रू समुदाय के लोग इस विधानसभा चुनाव में 21 साल में पहली बार वोट डालेंगे। ब्रू एक जनजाति समुदाय है और जातीय हिंसा के बाद इस समुदाय के लोगों को राज्य से पलायन करना पड़ा था। उन्होंने त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में शरण ली थी। कई वजहों से लंबे समय तक उनका पुनर्वास नहीं को सका था लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले ही इस प्रयास में तेज़ी आई है।विस्थापित हुए 32 हज़ार ब्रू समुदाय के लोगों में से 11 हज़ार मतदाता हैं। हालाँकि मिज़ोरम के सीईओ ने कहा है कि उत्तरी त्रिपुरा के छह राहत शिविरों में सभी मतदाताओं को वोट डालने के लिए ममिट के कान्हमून गाँव में व्यवस्था की गई है। इन मतदाताओं को 1996 की मतदाता सूची के आधार पर सत्यापित किया गया है। इस सूची को अाख़िरी बार 2014 में अपडेट किया गया था।यंग मिज़ो असोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स असोसिएशन राज्य के निर्वाचन मंडल से ब्रू समुदाय के लोगों के नाम हटाने की माँग करती रही हैं।
मिज़ोरम के ब्रू समुदाय के लोगों ने 1995 में जातीय हिंसा के बाद त्रिपुरा में शरण ली थी। तब मिज़ो और ब्रू के बीच झड़पें हो गई थीं। यंग मिज़ो एसोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन का मानना है कि यह जनजाति मिज़ोरम मूल की नहीं है।
हिंसा के बाद ब्रू नेशनल लिबरेशन फ़्रंट (बीएनएलएफ़) नाम का चरमपंथी संगठन बना। ब्रू नैशनल यूनियन (बीएनयू) नाम की एक राजनीतिक पार्टी आैर मिज़ोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपल्स फोरम (एमबीडीपीएफ़) नाम के संगठन भी बने। तीनों संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर अपने-अपने तरीक़ों से लड़ाई जारी रखी। बाद में ब्रू समदाय के पुनर्वास के लिए बीडीपीएफ़ का मिज़ोरम, त्रिपुरा व केंद्र सरकार के सहयोग एक समझौता हुआ।
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