एनडीटीवी वाले कमाल ख़ान को मैं ख़ूब जानता था। उनकी इस तरह की अनकही जुदाई का इसीलिये मुझे बेहद रंज है। 2005 में, जब से मेरे गृह प्रदेश यूपी में मेरी वापसी हुई, तब से मेरी उनसे यारी थी। वह मुझसे उम्र में सिर्फ़ 2 बरस छोटे थे इसलिए 'एज डिफ़रेंस' (उम्र में अंतर) जैसा कोई मुद्दा हमारी यारी के बीच कभी नहीं उभरा। वह 'लुक' में मेरी तरह बुड्ढे-ठुड्डे नहीं, खूबसूरत जवान थे, इसलिए मेरे और उनके जवान विचारों में ख़ूब मेल था। अपनी जवानी से लेकर आज तक पत्रकारिता में अच्छी 'कॉपी' लिखने का मुझे शग़ल रहा और मैं हमेशा इस बात की कोशिश में जुटा रहा। 



अपने टीवी पत्रकार बेटे की यह मूर्खतापूर्ण बात मुझे कभी हज़म नहीं हुई 'कि टीवी न्यूज़ रिपोर्ट में  अच्छी भाषा की कोई दरकार नहीं, और यह कि यह सिर्फ़ विज़ुअल का  माध्यम है।' तब और तब मैं जवाब में बड़े ठसक़े के साथ कमाल ख़ान की रिपोर्टों का हवाला देकर टीवी जगत में व्याप्त इस बेतुकी उलटबाँसी को ख़ारिज कर डालता।