एल्गार परिषद मामले में सीपीआई माओवादी से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा और वरनों गोंजाल्विस की ज़मानत याचिका को बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को ख़ारिज़ कर दिया। उनको पुणे पुलिस द्वारा अगस्त 2018 में गिरफ़्तार गिया गया था।
ज़मानत के लिए लगाई गई याचिका पर पिछले हफ़्ते ही हाई कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछले साल पुणे की विशेष अदालत द्वारा ज़मानत याचिक ख़ारिज़ कर दिए जाने के बाद भारद्वाज ने बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर रुख किया था।
'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, भारद्वाज के वकील युग चौधरी ने कोर्ट से कहा था कि भारद्वाज के घर की तलाशी लेने वाले पुलिस अधिकारी के अलावा किसी भी गवाह का बयान चार्जशीट में ऐसा नहीं है जिसे अपराधी साबित करने वाला कहा जाए। उन्होंने कहा कि जिन काग़जातों के आधार पर पुलिस ने उनको गिरफ़्तार किया था वे उनके कम्प्यूटर से नहीं निकाले गए थे।
फरेरा की ज़मानत याचिका में वकील सुदीप पसबोला ने दलील दी कि फरेरा की गिरफ़्तारी सिर्फ़ इसलिए की गई थी कि जान पहचान एक दूसरे आरोपी सुरेंद्र गडलिंग के साथ थे और वह इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लायर्स के सदस्य थे।
अपनी राय बतायें