वंचितों-शोषितों के लिए संघर्ष करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की गिरफ़्तारी की वज़ह क्या कार्पोरेट जगत था? क्या भीमा कोरेगाँव मामले में उन्हें फँसाने की साज़िश रची गई? तीन साल की जेल के दौरान उनके अनुभव कैसे रहे? वे मौजूदा समय को सामाजिक-आर्थिक आंदोलनों के लिए कैसा मानती हैं? क्या उन्हें उम्मीद है कि समय बदलेगा? सुधा भारद्वाज से बात कर रहे हैं डॉ. मुकेश कुमार-