शिवसेना की दशहरा रैली को लेकर अभी भी पेच फंसा हुआ है। इस बीच खबर है कि शिवसेना के बागी गुट एकनाथ शिंदे को बांद्रा के बीकेसी मैदान पर दशहरा रैली करने की मंजूरी मिल गई है लेकिन शिवाजी पार्क पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है। उधर, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर शिवाजी पार्क मैदान पर ही दशहरा रैली करने की बात कही है।
ठाकरे का कहना है कि शिवसेना की जो परंपरा पिछले पांच दशक से चली आ रही है वह इस साल भी जारी रहेगी।
महाराष्ट्र में चल रही राजनीतिक उठापटक के बीच उद्धव ठाकरे की शिवसेना और बागी शिंदे गुट के बीच जंग जारी है। महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार जहां हर रोज ठाकरे सरकार द्वारा लिए गए फैसलों को पलट रही है वहीं अब शिवसेना की परंपरागत दशहरा रैली पर भी संकट के बादल मंडराये हुए हैं। इस बीच एकनाथ शिंदे गुट को अच्छी खबर यह मिली है कि उसे बांद्रा के बीकेसी मैदान में दशहरा रैली करने की मंजूरी मिल गई है, जबकि दादर के शिवाजी पार्क में रैली करने को लेकर अभी तक बीएमसी ने कोई फैसला नहीं किया है।
एमएमआरडीए ने उद्धव गुट की बांद्रा के बीकेसी मैदान में रैली करने की अर्जी को खारिज कर दिया है। एमएमआरडीए का कहना है कि बीकेसी के मैदान पर रैली आयोजित करने के लिए एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से पहले आवेदन आया था इसलिए उसी के आधार पर शिंदे गुट को रैली करने की इजाजत दी गयी है।
अब उद्धव ठाकरे गुट के पास सिर्फ शिवाजी पार्क मैदान में रैली करने के अलावा कोई चारा नहीं दिख रहा है। शिवाजी पार्क मैदान पर दशहरा रैली आयोजित करने के लिए एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से भी आवेदन किया गया था लेकिन उद्धव ठाकरे द्वारा इसी मैदान पर रैली करने के लिए अड़े रहने पर अभी तक बीएमसी की तरफ से किसी भी गुट को इजाजत नहीं दी गई है।
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परंपरा का दिया तर्क
उधर, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर मुंबई के शिवाजी पार्क मैदान में ही दशहरा रैली आयोजित करने की बात कही है। उद्धव ठाकरे बार-बार कह रहे हैं कि शिवसेना पिछले 56 सालों से मुंबई के शिवाजी पार्क मैदान में दशहरा रैली करती आई है। ऐसे में कोई भी उनकी इस परंपरा को नहीं तोड़ सकता है। ठाकरे ने बागी गुट पर आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ लोग बाला साहब ठाकरे के नाम का प्रचार करके सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र की जनता जब दशहरा रैली के मौके पर शिवाजी पार्क मैदान में जमा होगी तो उनको खुद ब खुद जवाब मिल जाएगा।
शिवाजी पार्क मैदान बीएमसी के तहत आता है और इसकी इजाजत बीएमसी से ही मिलने वाली है लेकिन नई सरकार आने के बाद बीएमसी के कामकाज में भी शिंदे सरकार का दखल हो गया है। ऐसे में यह मुमकिन है कि बीएमसी की तरफ से उद्धव ठाकरे को रैली करने की इजाजत जल्द नहीं मिलेगी।
हालांकि उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी के नेताओं को दशहरा रैली शिवाजी पार्क मैदान पर ही करने के लिए जरूरी दिशा निर्देश दे दिए हैं। लेकिन शिवसेना के नेता बीएमसी से रैली आयोजित करने की इजाजत का इंतजार कर रहे हैं।
दोनों गुटों में हुई थी झड़प
कुछ दिन पहले ही शिवाजी पार्क से सटे इलाके में उद्धव ठाकरे गुट और एकनाथ शिंदे गुट के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई थी जिसमें शिंदे गुट के विधायक सदा सरवणकर ने अपनी पिस्टल से फायरिंग भी कर दी थी जिसके बाद से इलाके में तनाव चल रहा है। बीएमसी के बड़े अधिकारी यह संभावना जता रहे हैं कि अगर शिवाजी पार्क मैदान में किसी भी पक्ष को रैली करने की इजाजत दी जाती है तो फिर दूसरा पक्ष भड़क सकता है और ऐसी संभावना है कि दोनों गुटों में से किसी भी गुट को शिवाजी पार्क मैदान में रैली करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
हालांकि बीएमसी पुलिस विभाग के भी संपर्क में है कि अगर शिवाजी पार्क में रैली करने की किसी भी पक्ष को इजाजत दी जाती है तो इसके क्या परिणाम होंगे।
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अदालत जाएगा उद्धव गुट?
अगर शिवाजी पार्क मैदान पर किसी भी पक्ष को रैली करने की इजाजत नहीं मिलती है तो ऐसे में उद्धव ठाकरे गुट के पास रैली आयोजित करने के लिए अदालत जाने के दरवाजे खुले हुए हैं। लेकिन अगर अदालत से इजाजत नहीं मिलती है तो फिर उद्धव ठाकरे मुंबई के रेसकोर्स या फिर पूर्वी मुंबई के सोमैया मैदान में रैली का आयोजन कर सकते हैं, क्योंकि मुंबई के बांद्रा बीकेसी मैदान पर एकनाथ शिंदे गुट को पहले ही रैली करने की इजाजत मिल चुकी है।
शिवाजी पार्क से पुराना नाता
बता दें कि शिवसेना और शिवाजी पार्क का पुराना नाता रहा है। शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने दादर के इसी शिवाजी पार्क मैदान में पार्टी की नींव रखी थी और यहीं से उन्होंने दशहरा रैली पर शिवसेना के कार्यकर्ताओं को संबोधित करना शुरू किया था। जब महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी ने पहली बार मिलकर सरकार बनाई थी तो शिवसेना नेता मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने थे और शिवाजी पार्क के मैदान पर ही मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने शपथ ली थी। बालासाहेब ठाकरे का इस मैदान से इतना लगाव था कि उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार भी इसी मैदान पर किया गया था और उसके बाद इसी मैदान पर उनका स्मृति स्थल भी बनाया गया है।
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