सामना में संपादकीय-आज कल हमारे देश में कोई भी किसी को तालिबानी कह रहा है। क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान का तालिबानी शासन मतलब समाज व मानव जाति के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। पाकिस्तान, चीन जैसे राष्ट्रों ने तालिबानी शासन का समर्थन किया है, क्योंकि इन दोनों देशों में मानवाधिकार, लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं बचा है। हिंदुस्तान की मानसिकता वैसी नहीं दिख रही है। हम हर तरह से ज़बरदस्त सहिष्णु हैं। लोकतंत्र के बुरके की आड़ में कुछ लोग तानाशाही लाने का प्रयास कर रहे होंगे फिर भी उनकी सीमा है। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना तालिबान से करना उचित नहीं है।
जावेद अख़्तर के तालिबान वाले बयान पर RSS के बचाव में शिवसेना
- महाराष्ट्र
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- 6 Sep, 2021
आरएसएस की तालिबान से तुलना करने वाली गीतकार जावेद अख़्तर की टिप्पणी के बाद शिवसेना आरएसएस के बचाव में आ गई है। अपने मुखपत्र सामना में संपादकीय लिखकर शिवसेना ने जावेद अख़्तर की धर्मनिरपेक्षता की तो तारीफ़ की है, लेकिन उनकी तालिबान से तुलना को ग़लत बताया है। पढ़िए सामना के संपादकीय में क्या लिखा है-

‘तालिबान का कृत्य बर्बर होने के कारण निंदनीय है। उसी तरह से आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल का समर्थन करनेवालों की मानसिकता तालिबानी प्रवृत्तिवाली है। इस विचारधारा का समर्थन करनेवाले लोगों को आत्मपरीक्षण करने की ज़रूरत है।’ ऐसा मत वरिष्ठ कवि-लेखक जावेद अख्तर ने व्यक्त किया है और इसे लेकर कुछ लोग हंगामा करने लगे हैं।