ये सही है कि कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है। बिहार चुनाव में ख़राब प्रदर्शन के बाद उसे अपने सहयोगी आरजेडी और वाम दलों की खरी खोटी सुननी पड़ी थी। साथ ही पार्टी के भीतर भी कई नेताओं ने इसे लेकर नाराज़गी जताई थी कि आलाकमान कई अहम मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रहा है।
लेकिन अब हालात ये हैं कि महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी शिव सेना ने ऐसी टिप्पणी की है, जो शायद उसके सियासी भविष्य के लिए ख़तरनाक है। एएनआई के मुताबिक़, शिव सेना सांसद संजय राउत ने कहा है कि कांग्रेस अब कमजोर हो चुकी है इसलिए विपक्षी दलों को साथ आने और यूपीए को मजबूत करने की ज़रूरत है।
राउत ने कहा, ‘अगर एनसीपी मुखिया शरद पवार को यूपीए का चेयरपर्सन बनाने का कोई प्रस्ताव आता है तो शिव सेना उसका स्वागत करेगी लेकिन मैंने सुना है कि उन्होंने इस प्रस्ताव को नकार दिया है।’
राउत ने मुंबई तक से कहा, ‘कांग्रेस की क्षमता सीमित है। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल शरद पवार को अपना नेता मानते हैं। मुझे नहीं लगता कि उनके क़द का कोई और नेता है।’
कुछ दिन पहले जब शरद पवार ने कहा था कि राहुल गांधी में एकाग्रता की कमी है तो कांग्रेस की ओर से इस पर सख़्त एतराज जताया गया था।
एनसीपी की ओर से गुरूवार को इस बात को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि यह सब मीडिया में आई बेबुनियाद चर्चाएं हैं और इस मसले पर यूपीए में शामिल दलों के बीच कोई चर्चा नहीं हुई है।
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संजय निरूपम का बयान
कांग्रेस को शिव सेना की यह टिप्पणी नागवार गुजरी है। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम ने ट्वीट कर राउत के इस बयान पर प्रतिक्रिया दी है। निरूपम ने कहा है कि दिल्ली से मुंबई तक राहुल गांधी के ख़िलाफ़ जो अभियान चल रहा है, शरद पवार को यूपीए का चेयरपर्सन बनाने का शिगूफा उसी का हिस्सा है।
राउत की इस टिप्पणी के बाद महा विकास अघाडी सरकार के भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं। क्योंकि निश्चित रूप से कांग्रेस आलाकमान भी इस तरह की चर्चा कहां से शुरू हुई है, कौन इसके पीछे है, इसका पता लगाएगा।
महाराष्ट्र सरकार में सम्मान नहीं?
वैसे भी, शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी ने जबसे महाराष्ट्र में मिलकर सरकार बनाई है, पूछा जाता है कि यह कितने दिन चलेगी। क्योंकि इन दलों की विचारधारा अलग-अलग है। कांग्रेस, एनसीपी जहां सेक्युलर राजनीति करने का दावा करते हैं, वहीं शिव सेना हिंदुत्व की राजनीति करने के लिए जानी जाती है। लेकिन बदले हालात में शिव सेना को जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली तो उसने कांग्रेस-एनसीपी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और राज्य में महा विकास अघाडी की सरकार बनी।
पिछले एक साल में कई बार कांग्रेस के नेताओं की ये शिकायत सामने आई कि उन्हें राज्य सरकार में सियासी अहमियत नहीं दी जाती। इसका संकेत तब भी मिला था जब कुछ महीने राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस महाराष्ट्र में फ़ैसले लेने वाली प्रमुख पार्टी नहीं है।
हाल में हुआ था घमासान
कांग्रेस में कुछ दिनों पहले ही कपिल सिब्बल के इंटरव्यू के बाद जबरदस्त घमासान मचा था। घमासान इतना ज़्यादा था कि सिब्बल के ख़िलाफ़ अधीर रंजन चौधरी, अशोक गहलोत, तारिक़ अनवर से लेकर सलमान खुर्शीद तक ने मोर्चा खोल दिया था। इससे कांग्रेस की भीतरी लड़ाई सड़कों पर आ गई थी।
अधीर रंजन चौधरी ने कहा था, ‘अगर कुछ नेता सोचते हैं कि कांग्रेस उनके लिए सही दल नहीं है तो उन्हें नई पार्टी बना लेनी चाहिए या वे किसी दूसरी ऐसी पार्टी में भी शामिल हो सकते हैं, जो उन्हें अपने लिए सही लगती हो।’
ख़ैर, किसान आंदोलन के बीच इस घमासान को लेकर क्या अपडेट है, ऐसी कोई ख़बर नहीं आई लेकिन पहले पवार का राहुल गांधी को लेकर दिया गया बयान और अब यूपीए चेयरपर्सन को बदले जाने की चर्चा और इस पर शरद पवार के आने की बात गंभीर संकेत देती है।
शरद पवार को यूपीए चेयरपर्सन बनाने की चर्चा कहीं से तो छेड़ी गई होगी। अचानक ही मीडिया में इसे लेकर हल्ला मचने का मतलब है कि सीधा कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल।
कांग्रेस अपने नेताओं के सियासी तीरों, बिहार के बाद हैदराबाद और राजस्थान के निकाय चुनाव में प्रदर्शन को लेकर पहले से ही परेशान है, ऐसे में इस चर्चा का मतलब है कि कांग्रेस के सहयोगी दल ही उसे यूपीए में मुख्य भूमिका से हटाना चाहते हैं।
कब चेतेगी कांग्रेस?
यूपीए में शामिल जितने भी दल हैं, उनमें कांग्रेस सबसे पुरानी है। लेकिन आज सिर्फ़ चार राज्यों में उसकी सरकार है और वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्थायी अध्यक्ष के चयन से लेकर पार्टी में आतंरिक चुनाव कराने की पुरजोर मांग के बीच वह लुंज-पुंज हालत में दिखती है। यूपीए चेयरपर्सन को बदले जाने की चर्चाओं के बाद उसे चेत जाना चाहिए कि अगर अब भी वह नहीं जागी तो फिर उसके लिए इस रात की सुबह कभी नहीं आएगी।
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