राज ठाकरे ने कहा, "मैं उस गंगा के गंदे पानी को छू भी नहीं सकता, पीना तो दूर की बात है। देश की कोई भी नदी साफ नहीं है। बाला नंदगांवकर मेरे लिए महाकुंभ से गंगाजल लेकर आए थे, लेकिन मैंने इसे पीने से साफ मना कर दिया।"
उन्होंने लोगों से अंधविश्वास से बाहर निकलने की अपील की और कहा, "लाखों-करोड़ों लोग उस पानी में नहाते हैं, फिर भी इसे पवित्र मानते हैं। कोविड के बाद लोग मास्क पहनकर घूम रहे थे, और अब उसी पानी में डुबकी लगा रहे हैं। यह समझ से परे है।"
ठाकरे ने गंगा सफाई अभियान पर भी तंज कसा, "मैं राजीव गांधी के समय से सुन रहा हूं कि गंगा साफ होगी, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। यह मिथक तोड़ने का समय है।"
महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री और बीजेपी नेता गिरीश महाजन ने कहा, "राज ठाकरे को अपनी राय रखने का हक है, लेकिन वे लाखों लोगों की आस्था पर सवाल नहीं उठा सकते। महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक लोगों ने स्नान किया, यह आस्था का प्रतीक है।"
बीजेपी नेता आरपी सिंह ने ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा, "वे महाकुंभ गए ही नहीं। पहले वहां जाकर डुबकी लगाएं, फिर पानी की गुणवत्ता पर बोलें।"
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और एकनाथ शिंदे गुट ने ठाकरे के बयान की निंदा की। शिंदे गुट के एक नेता ने कहा, "यह हिंदू भावनाओं का अपमान है। राज ठाकरे को माफी मांगनी चाहिए।" एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के विधायक रोहित पवार ने कहा, "धार्मिक भावनाओं का सम्मान जरूरी है। मैं खुद महाकुंभ गया और स्नान किया। प्रदूषण एक समस्या है, लेकिन आस्था को ठेस पहुंचाना ठीक नहीं।"
कई हिंदू संगठनों ने ठाकरे के खिलाफ प्रदर्शन की धमकी दी है। एक संत ने कहा, "गंगा माता पर ऐसी टिप्पणी अस्वीकार्य है। यह हमारी संस्कृति पर हमला है।"
- कुछ पर्यावरणविदों और सोशल मीडिया यूजर्स ने ठाकरे के बयान का समर्थन किया। एक यूजर ने लिखा, "ठाकरे ने सच कहा। गंगा की हालत दयनीय है, इसे स्वीकार करना होगा।"
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