महाराष्ट्र और मुंबई में कोरोना का संकट देश में सर्वाधिक है लेकिन उससे हटकर यहाँ सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव का एक नया ही खेल चल रहा है। एक विवाद पर पर्दा गिरता है तो दूसरा शुरू हो जा रहा है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के विधायक बनने और उनकी सरकार की स्थिरता को लेकर उठा विवाद ख़त्म ही हुआ था कि अब राजभवन की नियुक्तियों का विवाद शुरू हो गया।
राज्यपाल की तरफ़ से एक प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है- ‘जिस तरह से विधानसभा और उच्च न्यायालय के लिए स्वतंत्र आस्थापना विभाग हैं उसी तरह राजभवन में भी स्वतंत्र आस्थापना विभाग बनाया जाए तथा उसे मुख्यमंत्री के अधीनस्थ प्रशासकीय नियंत्रण विभाग से मुक्त रखा जाए’। राज्य का सामान्य प्रशासन विभाग, राजभवन से मिले इस प्रस्ताव को लेकर परेशान है।
राजभवन की तरफ़ से एक और प्रस्ताव है कि विधायक और सांसद निधि की तरह राज्यपाल की निधि भी अब 15 लाख से बढ़ाकर 5 करोड़ की जाए। सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव सीताराम कुंटे के मुताबिक़ इस तरह का कोई नियम राजभवन के लिए नहीं बना हुआ है। उन्होंने कहा कि इस बारे में राज्यपाल निधि के बारे में राजभवन को ईमेल लिखकर राय माँगी गयी है लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। राज्यपाल से मुलाक़ात का समय भी माँगा गया, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।
जानकारी के अनुसार, राज्यपाल की निधि का प्रस्ताव विधानसभा चुनाव के वक़्त आया था जिसका तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने समर्थन भी किया था, लेकिन अधिकारियों की नियुक्ति वाला यह प्रस्ताव नया है और इसको लेकर फिर से सरकार और राजभवन के रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है।
शनिवार को ही राजभवन और सरकार के रिश्तों में मधुरता बनाने की कवायद के लिए सांसद और सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत राजभवन गए थे और उन्होंने राज्यपाल का झुककर अभिवादन करते हुए फ़ोटो ट्वीट भी किया था। बाद में मीडिया के समक्ष आकर राउत ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रिश्ते को पिता-पुत्र का रिश्ता बताया था।
जब उद्धव ठाकरे के विधायक पद को लेकर राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव बढ़ा था उस समय संजय राउत ने ट्वीट कर राज्यपाल पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला बोला था और कहा था, ‘राजभवन को राजनीति का केंद्र न बनाएँ’।
वैसे भी प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा हर मुद्दे को राज्यपाल के समक्ष ले जाने को लेकर भी आए दिन सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच टीका-टिप्पणी का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में राजभवन में अधिकारियों की नियुक्तियाँ और उनकी पदोन्नति के अधिकार का मामला कई सवाल खड़ा करता है। आख़िर राज्यपाल क्यों ये अधिकार चाहते हैं? वैसे भी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने से लेकर देवेंद्र फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के राजनीतिक घटनाक्रम में कम विवादों में नहीं रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन पर सीधे प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क कर राज्य सरकार के कामकाज में दखल देने के आरोप भी लगे हैं और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी की है।
ऐसे में राजभवन में स्वतंत्र आस्थापना विभाग का मुद्दा कई सवाल खड़े करता है। विशेष बात तो यह कि राजभवन में केंद्रीय कैडर के एक अधिकारी की नियुक्ति भी की जा चुकी है। इस अधिकारी के दर्जे और उसके वेतन को लेकर सामान्य प्रशासन विभाग ने अपनी टिप्पणी भी की थी, लेकिन बाद में उसे मान्यता भी दे दी गयी। लेकिन इसके बाद अब ‘राजभवन प्रबंधन नियंत्रक’ पद के लिए एक और केंद्रीय सेवा के अधिकारी की प्रतिनियुक्ति का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया। इस पद के लिए राजभवन के ही अधिकारी की पदोन्नति करके या राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति से भरने के नियम को बताकर इसे वापस लौटा दिया गया।
राजभवन से कुछ और पद भी केंद्रीय कैडर के अधिकारियों से भरने के प्रस्ताव की भी बात बतायी जा रही है, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा उन पर आपत्ति उठाने से अब प्रस्ताव स्वतंत्र आस्थापना विभाग स्थापित करने तक आ पहुँचा।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पहले ही मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त प्रवीण परदेशी की अचानक बदली पर भी ये सवाल उठे थे। परदेशी ने नए पद पर कार्य शुरू नहीं किया है और उनके केंद्रीय कैडर में जाने की ख़बरें हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि राजभवन अब प्रशासनिक शक्तियों को भी अपने हाथों में लेने की पहल क्यों लेना चाहता है! संविधान के प्रदत्त दायरों से बाहर निकलकर यदि नयी-नयी व्यवस्थाएँ निर्माण की जाएँगी तो देश के संघीय ढाँचे का क्या होगा?
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