एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी के मुख्य सचेतक श्रीरंग बार्ने ने मोदी मंत्रिमंडल में अन्य एनडीए सहयोगियों के अनुपात का हवाला देते हुए कहा, "हम कैबिनेट रैंक मिलने की उम्मीद कर रहे थे।"
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चिराग पासवान के पांच सांसद, जीतन राम मांझी की पार्टी का एक सांसद, जेडीएस के दो सांसद हैं... फिर भी उन्हें एक-एक कैबिनेट पद मिला। सात लोकसभा सीटें होने के बावजूद, शिवसेना (शिंदे) को केवल एक राज्य मंत्री (एमओएस) क्यों मिला? क्या शिवसेना भाजपा की पुरानी सहयोगी नहीं है? कम से कम उसके लिए तो एक कैबिनेट पद मिलना ही चाहिए था।
-श्रीरंग बार्ने, शिवसेना (शिंदे) चीफ व्हिप, 10 जून 2024 सोर्सः एएनआई
श्रीकांत शिंदे ने कहा, ''हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि हम बिना शर्त सरकार का समर्थन कर रहे हैं। इस देश को प्रधानमंत्री मोदी जी का नेतृत्व चाहिए। सत्ता के लिए कोई सौदेबाजी या बातचीत नहीं है। हमने एक वैचारिक गठबंधन को बिना शर्त समर्थन दिया है।'' श्रीकांत ने कहा, “हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र निर्माण के नेक काम को आगे बढ़ाएं। पार्टी, सभी विधायक और सांसद ईमानदारी से एनडीए के प्रति प्रतिबद्ध हैं।''
महाराष्ट्र में एनडीए की एक अन्य सहयोगी पार्टी एनसीपी (अजीत पवार) ने तो खुलकर कैबिनेट पद मांगा था। 9 जून को शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले नाराजगी जताते हुए अजीत पवार ने भाजपा की ओर से मिले राज्य मंत्री के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। पार्टी प्रमुख अजीत पवार और राज्यसभा सांसद प्रफुल्ल पटेल ने इसे "डिमोशन" बताया। मोदी के दफ्तर की ओर से प्रफुल्ल पटेल को राज्य मंत्री बनाने का प्रस्ताव भेजा गया था। अजीत पवार कैंप ने उस प्रस्ताव को फौरन ठुकरा दिया। प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि "केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य करने के बाद मुझे नहीं लगता कि स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री का पद स्वीकार करना उचित है। इसलिए हमने उनसे (भाजपा) कहा कि हम कुछ दिनों के लिए इंतजार करने को तैयार हैं। हम एक कैबिनेट पद चाहते हैं।"
इस लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने महाराष्ट्र में जिन 15 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से 7 पर जीत हासिल की, जबकि अजीत पवार की एनसीपी को कुल 48 सीटों में से चार में से एक सीट मिली। बीजेपी ने राज्य में 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और नौ सीटें जीतीं। इस तरह भाजपा का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। अब जबकि राज्य विधानसभा चुनाव सितंबर-अक्टूबर में होने वाले हैं, ऐसे में सहयोगी दलों की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है। विधानसभा में सीटों के बंटवारे पर महायुति में बवाल होना तय है।
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