महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बयान देने वाले केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ़्तारी के बाद सियासी माहौल बेहद गर्म है। शिव सेना की क़यादत वाली महा विकास आघाडी सरकार और बीजेपी इस मामले में आमने-सामने आ गई हैं।
राणे बीते 20 साल में पहले ऐसे केंद्रीय मंत्री हैं, जिनकी गिरफ़्तारी हुई है। महाराष्ट्र पुलिस द्वारा राणे की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस टीम भेजे जाने पर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि यह राज्य सरकार के प्रोटोकॉल के ख़िलाफ़ है कि वह केंद्रीय मंत्री को गिरफ़्तार करे। उन्होंने सवाल उठाया कि वह आख़िर कैसे एक केंद्रीय मंत्री के ख़िलाफ़ वारंट जारी कर सकती है। नारायण राणे राज्यसभा के सांसद भी हैं।
लेकिन यह किसी के लिए भी जानने का विषय होगा कि आख़िर केंद्रीय मंत्री को गिरफ़्तार करने की क्या प्रक्रिया है। इसे समझते हैं।
राज्यसभा के कामकाज के नियमों की धारा 22 ए के मुताबिक़, हालांकि पुलिस, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को, राज्य सभा के सभापति को गिरफ्तारी के कारण, हिरासत के स्थान या उनके कारावास के बारे में सूचित करना होता है।
इसके बाद राज्यसभा के सभापति अगर सदन चल रहा है तो इस बारे में सदन को सूचना देते हैं, अगर सदन नहीं चल रहा है तो वे सदस्यों की जानकारी के लिए इसे राज्यसभा के बुलेटिन में प्रकाशित करवा सकते हैं।
नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 135 के अनुसार, राज्यसभा सांसद को सदन के शुरू होने से 40 दिन पहले और इसके ख़त्म होने के 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
‘कोई अपराध नहीं किया’
इधर, राणे ने अपने बयान का बचाव किया और कहा कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। उन्होंने मीडिया को चेताते हुए कहा कि आपको पहले जांच कर लेनी चाहिए और फिर इसे टीवी पर दिखाना चाहिए वरना मैं आपके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर दूंगा। उन्होंने कहा कि मीडिया ऐसा सोचता है कि वे कोई साधारण आदमी हैं।
‘कैबिनेट से हटाने की मांग’
शिव सेना सांसद विनायक राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि वह नारायण राणे को अपनी कैबिनेट से हटाएं। राउत ने कहा है कि बीजेपी नेतृत्व को प्रभावित करने के लिए राणे शिव सेना और इसके नेताओं पर हमले कर रहे हैं।
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