बहुत पहले एक हिंदी फ़िल्म आयी थी जिसमें एक गाना था...ये मुंबई शहर हादसों का शहर है, लोग इस गाने को मनोरंजन के हिसाब से गाते और गुनगुनाते भी रहते हैं। लेकिन महानगरों में विगत वर्षों से जिस तरह से हादसे हो रहे हैं उससे तो यह लगने लगा है कि शहर में इंसान की जान कीड़े-मकौड़े जैसी हो गयी है। साल दर साल हादसे पर हादसे और जाँच पर जाँच होती है लेकिन सवाल वही खड़ा रहता है कि ऐसे हादसे कब रुकेंगे?