निशाने पर मुसलमान
यह सवाल उठने लगे थे कि क्या अब देश में किसी धर्म और समाज के लोगों को इस तरह से निशाने पर लिया जाएगा? लेकिन आज के दौर के गोदी मीडिया का यह टारगेट ज़्यादा दिन नहीं चल सका। कोरोना के प्रसार में सरकारी नीतियों की ख़ामियाँ उजागर होने लगीं तो सच्चाई लोगों के सामने आने लगी थीं। इसके बाद कोरोना को मात देकर तब्लीग़ी जमात के लोग इसके उपचार में सहायक साबित होने वाले 'प्लाज्मा' दान के लिए आगे आने लगे तो भी सवाल उठने लगे थे। क्या उन्हें किसी रणनीति के तहत टारगेट किया जा रहा था ?विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना पर नियंत्रण के लिए मुंबई महानगरपालिका के प्रयासों को सराहा। इस सफलता के पीछे सरकारी तंत्र ही नहीं, सामाजिक और धार्मिक संस्थानों से जुड़े लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
मसजिदों की भूमिका
2.5 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले धारावी में क़रीब साढ़े 9 लाख की आबादी रहती है। संक्रमण को रोकने में जुटे फ्रंटलाइन वर्कर्स को जल्द ही एहसास होने लगा था कि यहाँ धार्मिक समुदाय के अग्रणी लोग प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। धारावी में 30 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। यहाँ क़रीब 500 मसजिदें हैं।“
नमाज़ के बाद मसजिदों से इस बारे में संदेश का भी ऐलान किया जाता रहा। बात नहीं मानने वालों को डाँट लगाने के साथ ही कोरोना से जान गँवा चुके लोगों के बारे में बताया जाता था। लोगों को सामाजिक बहिष्कार की चेतावनी भी दी गई।
किरण दिघावकर, वॉर्ड कमिश्नर, जी-नॉर्थ
'ट्रेसिंग, ट्रैकिंग, टेस्टिंग'
धारावी में एक बड़ी दिक्क़त थी कोरोना वायरस की ट्रैकिंग। धारावी में कोविड संक्रमण पर नियंत्रण 'ट्रेसिंग, ट्रैकिंग, टेस्टिंग' बिना लोगों के सहयोग के सफल नहीं हो सकता था। ऐसे में इन मौलानाओं ने कोरोना को लेकर लोगों के भ्रम को दूर करने के साथ ही एक-दूसरे का ख्याल रखने की भी गुजारिश की। एक अप्रैल को धारावी के लेबर कैंप में संक्रमण का पहला केस मिला था। और देखते ही देखते रोज के सौ से अधिक संक्रमण के मामले आने लगे। मुख्य चुनौती कुंभरवाड़ा और कुठीवाडी जैसे इलाक़ों में संक्रमण को रोकना था।रमज़ान, ईद और शब-ए-बारात के मौके पर लोगों को बाहर निकलने से रोकना एक बड़ी चुनौती थी। ऐसे मामलों में लोग मौलवियों की बात मानते हैं। इसलिए लोगों में जन-जागरुकता फैलाई गयी। धारावी में रोज़ाना संक्रमण के मामले शून्य से दस के बीच तक पँहुच गए।
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