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महाराष्ट्रः मोदी सरकार को अचानक सोयाबीन किसानों की याद क्यों आई?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले नाराज किसानों को लुभाने के लिए, केंद्र सरकार ने मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत मानक 12% से ऊपर 15% तक नमी की मात्रा के साथ सोयाबीन की खरीद की अनुमति दी है। 

बाजार में कम कीमतों और सुस्त सरकारी खरीद को लेकर विदर्भ और मराठवाड़ा में किसानों के बीच बढ़ते गुस्से के बीच यह फैसला लिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, डिप्टी कमिश्नर (एमपीएस) बिनोद गिरी द्वारा शुक्रवार शाम को जारी एक आदेश में कहा गया है कि यह छूट खरीफ 2024-25 सीज़न के लिए ही है, राज्य सरकारें इस खर्च को वहन करेंगी और सामान्य नमी सीमा से अधिक सोयाबीन की खरीद से जुड़े नुकसान को भी उठाएंगी।

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देश में सबसे अधिक खरीद ​​महाराष्ट्र में होने के बावजूद खरीद प्रक्रिया धीमी है। 13.08 लाख टन में से अब तक सिर्फ 3,887.93 टन की खरीद हुई है। किसान देरी के लिए खरीद एजेंसियों में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और बैंडविड्थ को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जबकि सरकारी खरीद एजेंसियां ​​सोयाबीन में उच्च नमी की मात्रा को मुख्य बाधा बताती हैं।

चुनावी राज्य महाराष्ट्र में सोयाबीन एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जिसकी खेती 50 लाख हेक्टेयर में की जाती है। हालाँकि, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,892 रुपये प्रति क्विंटल से काफी कम मिल रहा है, प्रमुख खरीद केंद्र लातूर के बाजार में कीमतें 4,100- 4,200 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदर्भ में एक रैली के दौरान सोयाबीन किसानों को सहायता देने का वादा किया। लेकिन सरकार में इतने दिनों से होने के बावजूद किसानों को मदद नहीं मिली। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की अगली सरकार बनने पर बोनस के साथ 7,000 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी देने का वादा किया है।

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288 सदस्यीय विधानसभा में 20 नवंबर को एक ही चरण में मतदान होगा और वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी। नेता विपक्ष ने महाराष्ट्र की रैलियों में सोयाबीन किसानों की समस्या बार-बार उठाई है। उन्होंने इस संबंध में वीडियो जारी कर सोयाबीन किसानों के दर्द को साझा किया है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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