महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने फ़ैसला सुनाया है कि अजित पवार के नेतृत्व वाला एनसीपी गुट ही असली राजनीतिक दल है। उन्होंने गुरुवार को उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसमें उनके भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में पार्टी तोड़ने वाले विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की गई थी। पिछले साल जून में अजित खेमे ने शरद पवार के ख़िलाफ़ बगावत कर दी थी। इसी को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार गुट द्वारा याचिका दायर की गई थी।
इस महीने की शुरुआत में चुनाव आयोग ने अजित पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट को 'असली राजनीतिक पार्टी' घोषित किया था। इसका मतलब यह हुआ कि अजित पवार को पार्टी का नाम और घड़ी चुनाव चिह्न मिल गया। चुनाव आयोग के फ़ैसले के बाद शरद पवार के नेतृत्व वाले गुट को नया नाम 'राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शरदचंद्र पवार' मिल गया है।
अपने छह दशक के राजनीतिक करियर में पवार ने कम से कम चार अलग-अलग चुनाव चिह्नों पर चुनाव लड़ा है: बैल की जोड़ी, चरखा, गाय और बछड़ा, और हाथ और घड़ी। एनसीपी की स्थापना से पहले वह कांग्रेस, कांग्रेस (आर), कांग्रेस (यू), कांग्रेस (सोशलिस्ट), और कांग्रेस (आई) जैसी पार्टियों में थे।
वैसे, यह लड़ाई अभी सुप्रीम कोर्ट में बाक़ी है। चुनाव आयोग के फ़ैसले के बाद शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा था कि यह सवाल कि पार्टी किसकी है, सुप्रीम कोर्ट में तय किया जाएगा। चुनाव आयोग के फ़ैसले पर उन्होंने कहा, 'यह अदृश्य शक्ति की जीत है। जिस व्यक्ति ने पार्टी की स्थापना की उसे हार का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन मुझे ये अजीब नहीं लगता। हमें वह आदेश मिल रहा है जो शिवसेना के खिलाफ था। यही साजिश ठाकरे परिवार के खिलाफ भी रची गई थी। यह महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश है। यह फैसला हमारे लिए बिल्कुल भी चौंकाने वाला नहीं है। शरद पवार ने इस पार्टी को शून्य से खड़ा किया, हम इसे फिर से खड़ा करेंगे।'
महाराष्ट्र विधानसभा में एनसीपी के कुल 53 विधायक हैं। जहां अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट के पास 41 विधायकों के साथ बहुमत है, वहीं उनके चाचा शरद पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट के पास 12 विधायकों का समर्थन है।
नार्वेकर ने कहा, 'यह तथ्य है कि 29 जून, 2023 तक शरद पवार के नेतृत्व के लिए कोई समसामयिक चुनौती नहीं थी, जिसे अजित पवार गुट द्वारा 30 जून के एक प्रस्ताव के माध्यम से बदलने की मांग की गई थी। इसलिए, 30 जून 2023 को दो दावे मौजूद थे जब दो प्रतिद्वंद्वी गुट उभरे। क्या प्रतिद्वंद्वी एनसीपी चुनावों में संविधान और नियमों का पालन कर रही थी। क्या शरद पवार वैध रूप से चुने गए थे या शरद पवार ने प्रासंगिक समय पर इस्तीफा दे दिया था, इस पर मेरा कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। मैं इस जांच में नहीं जा सकता। यह प्रारंभिक मुद्दे को निर्धारित करने का आधार नहीं हो सकता है।'
उन्होंने आगे कहा, 'याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एक राष्ट्रीय समिति में शरद पवार को बहुमत का समर्थन प्राप्त था। लेकिन इसने समर्थन के पक्ष में साक्ष्य नहीं पेश किया। ऐसे दावों पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है और पार्टियों को संबंधित प्राधिकारी के समक्ष प्रासंगिक कार्यवाही शुरू करनी होगी। मेरा मानना है कि प्रारंभिक मुद्दा (वास्तविक राजनीतिक दल) निर्धारित करने के लिए नेतृत्व संरचना को ध्यान में नहीं रखा जा सकता है क्योंकि यह एक असंभव प्रयास होगा।'
जुलाई 2023 से दोनों नेताओं के बीच विवाद चल रहा है। तब अजित पवार ने शरद पवार के खिलाफ बगावत कर दी थी और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना सरकार में शामिल हो गए। इससे एनसीपी में विभाजन हो गया।
दोनों गुट मुख्य रूप से दो मुद्दों पर लड़ रहे थे- पार्टी किसकी है और क्या विपरीत गुट के विधायकों को दसवीं अनुसूची की धारा 2(1)(ए) के तहत अयोग्य ठहराया जा सकता है।
एक महीने पहले महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना घोषित किया था। उन्होंने दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था।
शिवसेना मामले में स्पीकर ने आख़िरी फ़ैसला सुनाने से पहले दलील रखते हुए कहा था कि 1999 के संविधान के आधार पर पार्टी के नेतृत्व ढाँचा पर फ़ैसला लिया जा सकता है और विधायकों की अयोग्यता का फ़ैसला भी उन्हीं नियमों को ध्यान में रखकर होगा।
स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के नेतृत्व ढांचे पर कहा, 'मुझे लगता है कि फरवरी 2018 के पत्र में दिखा नेतृत्व ढांचा प्रासंगिक है और यह निर्धारित करने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कौन सा गुट वास्तविक राजनीतिक दल है। प्रासंगिक नेतृत्व ढांचे की पहचान करने के लिए शिवसेना का संविधान प्रासंगिक है। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि 21 जून, 2022 से दो गुटों के उभरने का अनुमान था और 22 जून, 2022 को विधानमंडल सचिवालय के आधिकारिक रिकॉर्ड में भी यही बात सामने आई।'
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, 'मेरा मानना है कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट ही असली राजनीतिक पार्टी थी। जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट के पास 55 में से 37 विधायकों का भारी बहुमत था।'
नार्वेकर ने फ़ैसला देने से पहले शिवसेना के संविधान की व्याख्या भी की थी। उन्होंने कहा था कि 2018 में शिवसेना के संविधान में किए गए संशोधन को मानने से इनकार कर दिया। स्पीकर ने कहा था कि शिवसेना का 2018 का संविधान स्वीकार्य नहीं है और चुनाव आयोग में 1999 में जमा किया गया संविधान ही मान्य होगा। उन्होंने कहा था, 'प्रतिद्वंद्वी समूहों के उभरने से पहले ईसीआई को आखिरी बार प्रासंगिक संविधान 1999 में सौंपा गया था। मेरा मानना है कि ईसीआई द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया शिवसेना का संविधान यह तय करने के लिए शिवसेना का प्रासंगिक संविधान है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी असली है।'
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