महाराष्ट्र में चल रही सियासी उठापटक के बीच सुप्रीम कोर्ट से सोमवार को एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट के लिए कोई बड़ी खबर निकल कर सामने आ सकती है। सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों की अयोग्यता की कार्यवाही से लेकर, स्पीकर के चुनाव, पार्टी व्हिप को मान्यता देना, शिंदे सरकार का फ्लोर टेस्ट और एकनाथ शिंदे गुट की ओर से शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर किसका हक है, इन मामलों में सुनवाई चल रही है।
बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सोमवार को अदालत यह फैसला करेगी कि इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को सौंपना चाहिए या नहीं। अदालत ने चुनाव आयोग से भी शिवसेना के चुनाव चिन्ह और पार्टी के बारे में फैसला नहीं करने के लिए कहा था।
सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के गुटों की ओर से दायर तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
अगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा संवैधानिक बेंच का गठन किया जाता है तो फिर ऐसा माना जा सकता है कि यह मामला अदालत में लंबा खिंचेगा। गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने शिवसेना के 16 बागी विधायकों की बर्खास्तगी का मामला सुना था। एकनाथ शिंदे के वकील हरीश साल्वे ने अदालत के सामने अपना पक्ष रखते हुए विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार के बारे में अदालत को बताया था। हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि जब तक विधायक अपने पद पर हैं तब तक वह सदन की गतिविधि में हिस्सा लेने के लिए बाध्य होता है। ऐसे में वह पार्टी के खिलाफ भी मतदान कर सकता है।
इस पर सीजेआई रमना ने सवाल करते हुए कहा था कि क्या एक बार चुने जाने के बाद विधायक पर पार्टी का नियंत्रण नहीं होता?
सिब्बल ने कहा था कि शिवसेना के बागी विधायकों को उनके आचरण के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है। उन्होंने अदालत से कहा था कि इन बागी विधायकों का कहना है कि वह एक राजनीतिक दल हैं लेकिन अगर 40 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया है तो फिर उनके राजनीतिक दल का दावा होने का क्या आधार है।
चुनाव आयोग का निर्देश
उधर, चुनाव आयोग के वकील अरविंद दातार से जब चीफ जस्टिस रमना ने पूछा था कि हमें जानकारी मिली है कि दोनों पक्षों ने शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर अपना दावा किया है। इस पर आयोग के वकील ने अदालत को बताया था कि अगर हमारे पास मूल पार्टी होने का कोई दावा लेकर आता है तो हम उस पर निर्णय लेने के लिए बाध्य होते हैं। हम अपने सामने रखे गए तथ्यों के आधार पर ही निर्णय लेते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा था कि फिलहाल यह पूरा मामला एक ही पार्टी से संबंधित है लिहाजा इस बारे में चुनाव आयोग अभी जल्दबाजी में कोई फैसला ना ले क्योंकि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
इससे पहले की सुनवाई में अदालत में दोनों पक्षों के वकीलों में जोरदार बहस हुई थी। वहीं चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने शिंदे गुट को फटकार लगाई थी और उन्हें दोबारा ड्राफ्ट जमा करने के लिए कहा था। साथ ही बेंच ने शिंदे पक्ष के वकील से कहा था कि हमने 10 दिन के लिए सुनवाई टाल दी थी और आपने सरकार ही बना ली और अपना स्पीकर भी बदल लिया।
विधायकों ने की थी बगावत
बता दें कि 20 जून को शिवसेना के एक दर्जन से ज्यादा विधायक पहले सूरत पहुंच गए थे और फिर गुवाहाटी के लिए निकल गए थे। 25 जून को महाराष्ट्र के डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए नोटिस भेजा था जिसके बदले में बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 26 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई भी की थी और 10 दिन में इस मामले को फिर से सुनने के लिए कहा था।
लेकिन इसी बीच 28 जून को महाराष्ट्र के राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कह दिया लेकिन उद्धव ठाकरे सरकार ने 29 जून को सुप्रीम कोर्ट में फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने के लिए याचिका दाखिल कर दी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
एकनाथ शिंदे ने 30 जून को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली थी। इसके बाद 3 जुलाई को विधानसभा के नए स्पीकर का चुनाव भी हो गया और 4 जुलाई को एकनाथ शिंदे ने विश्वासमत हासिल कर लिया था।
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