loader

महाराष्ट्र में हिंदुत्व के अब 3-3 ‘ठेकेदार’, राज ठाकरे कहाँ टिकेंगे?

महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी को नया 'लुक' दिया है। पार्टी ने स्थापना के 14वें साल पर पहली बार राज्य स्तरीय अधिवेशन बुलाया और न सिर्फ़ अपने झंडे का रंग बदला बल्कि कई और बदलाव किए। पार्टी प्रमुख राज ठाकरे अब तक की अपनी सभाओं में जो पहला वाक्य 'उपस्थित मेरे मराठी बंधुओं, माताओं-बहनों ' कहकर सम्बोधित करते थे उसको बदलकर 'मेरे हिन्दू भाइयों-बहनों-माताओं' कर दिया। संकेत साफ़ हैं कि राज ठाकरे अब हिंदुत्व की हवा को साधने की कोशिश करेंगे, लेकिन क्या वह इसमें सफल हो पायेंगे, यह सबसे बड़ा सवाल है? सवाल यह भी है कि क्या नए 'लुक' दे देने मात्र से ही पार्टी सफल हो जाएगी, जिसका उसे क़रीब एक दशक से इंतज़ार है?

2006 में राज ठाकरे ने मनसे की स्थापना की थी और उन्होंने 'मराठी मानुष' का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाया था। यह वह दौर था जब शिवसेना 'मी मुंबईकर' अभियान चलाकर पार्टी से उस वर्ग को भी जोड़ना चाह रही थी जो मुंबई में वर्षों से रह रहे हैं और 'ग़ैर-मराठी' हैं। संदेश साफ़ था, 80 के दशक में 'राम जन्म भूमि आंदोलन' और बाबरी मसजिद ढहने के कुछ अरसे बाद मुंबई में हुए बम धमाकों और उस कारण फैले दंगों के बाद शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे की 'हिन्दू हृदय सम्राट' की विस्तारित होती छवि और उनके चाहने वालों को अपना मतदाता बनाना। मुंबई में बड़ी संख्या में 'ग़ैर-मराठी ' मतदाता रहता है और जिस पार्टी ने उस मतदाता को साधा प्रदेश में उसकी सरकार आसानी से बन जाती है। मुंबई में 36 विधानसभाएँ हैं।

ताज़ा ख़बरें

1995 में भी जब शिवसेना-बीजेपी की सरकार बनी, अधिकांश सीटें इन्हीं दोनों पार्टियों ने जीती थीं और इस बार के विधानसभा चुनावों में भी वही हुआ। उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान मिलने के बाद जब राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाकर अपनी नयी राजनीतिक पारी की शुरुआत की तो उन्होंने पोस्टर्स पर बालासाहब ठाकरे को प्रमुखता से स्थान दिया था और ऐसा करके वह शायद शिव सैनिकों के दिलों में उस सवाल को खड़ा करना चाहते थे कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना 'मराठी मानुष' के मुद्दे से पीछे हट रही है। ‘मैं इस मुद्दे के साथ खड़ा हूँ और मैं ही अब 'मराठी अस्मिता ' का असली ध्वज वाहक हूँ।’ इस नारे के बल पर राज ठाकरे शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के बेटों, जो विद्यार्थी सेना में उनके साथ काम किये हुए थे, को अपने साथ जोड़ने में सफल भी रहे। साल 2009 के विधानसभा चुनावों में युवा मराठी मतदाता उनसे जुड़ा भी और 13 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी पार्टी को जीत मिली। पार्टी को प्रदेश में 5.71% वोट मिले तथा नाशिक महानगरपालिका में वह सत्तासीन भी हुई। लेकिन आगे के चुनावों में यह वोटों का हिस्सा घटता हुआ 3.1 व 2.3 फ़ीसदी हो गया। 2014 व 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का सिर्फ़ एक ही विधायक जीत हासिल कर सका।

बालासाहब की शिवसेना और मनसे में यह एक बड़ा फर्क राजनीतिक विश्लेषकों को जो नज़र आता रहा है वह यह है  शिवसेना में बालासाहब ही सर्वेसर्वा और प्रमुख रहे हैं लेकिन उन्होंने अनेक नेताओं और उनके आन्दोलनों को अपनी छत्रछाया में बढ़ाया। लेकिन राज ठाकरे की मनसे उसमें कहीं न कहीं असफल सी दिखी।

राज ठाकरे ने जिस तरह से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय नहीं लिया था ठीक उसी तरह का निर्णय आपातकाल के दौर में बालासाहब ठाकरे ने भी लिया था। लेकिन इन दोनों में एक फर्क जो दिखता है वह यह है कि बालासाहब का चुनाव के अगले ही दिन फिर से नए नयी रणनीति के साथ खड़े हो जाना।

राज ठाकरे पर 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान यह आरोप लगाए गए कि वह शरद पवार के इशारे पर नरेंद्र मोदी-अमित शाह के ख़िलाफ़ 'प्रॉक्सी प्रचार' कर रहे हैं। पवार से अच्छा उदाहरण और कौन हो सकता है संगठन निर्माण का। क़रीब दो दर्जन से अधिक विधायक चुनाव के ठीक पहले पवार को छोड़कर चले गए लेकिन उन्होंने न सिर्फ़ पार्टी को फिर से खड़ा किया बल्कि राष्ट्रवादी कांग्रेस का आज तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन का इतिहास रचा।

राज ठाकरे कैसे करेंगे वापसी?

राज ठाकरे और उनकी पार्टी को ‘शिवसेना ने क्या छोड़ दिया और क्या थाम लिया’ इस नीति से हटकर अपनी एक छवि बनानी होगी। इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि राज ठाकरे का युवाओं में ख़ासकर मराठी में, आकर्षण कम हो गया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने जो सभाएँ ली थीं उनमें बड़ी संख्या में युवा आये थे। यूट्यूब पर उनके अपलोड किये गए वीडियो लाखों लोग देखते थे, मोदी और शाह के ख़िलाफ़ की गयी उनकी बातें सोशल मीडिया पर छाने लगी थीं, लेकिन इन सबके बावजूद महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव परिणाम में बीजेपी-शिवसेना को 2014 से भी अच्छी सफलता मिली। उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में मनसे के प्रदर्शन में कोई वृद्धि होने की बजाय वोट अनुपात में गिरावट ही दर्ज हुई। इसके कारण राज ठाकरे को तलाशने होंगे? उन्हें इस बात का जवाब ढूँढना होगा कि वे उनकी सभाओं में जमा होने वाली भीड़ को अपने पक्ष में क्यों नहीं कर पाए? 

हिंदुत्व का मुद्दा उठाने पर कई लोग यह बात कहने लगे हैं कि उन्हें बीजेपी के रूप में नया साथी मिल गया है और वह भविष्य में उस गठबंधन में शिवसेना वाली भूमिका में दिखाई देंगे।

लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के उदय के बाद जिस तरह से महाराष्ट्र में बीजेपी नेताओं और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की महत्वाकांक्षाएँ जागी हैं, उसको नज़रअंदाज़ कैसे किया जा सकता है। 2014 से 19 तक सत्ता में साथ रखकर बीजेपी ने जिस तरह से शिवसेना के पर कतरे हैं और इस दौरान उनके बीच किस तरह का शीत युद्ध चल रहा था वह 2019 विधानसभा चुनाव परिणाम आते ही ज़ाहिर हो गया।

महाराष्ट्र से और ख़बरें
इसलिए हिंदुत्व के मुद्दे पर पार्टी खड़ी करने की यह राह भी इतनी आसान नहीं है। यहाँ शिवसेना के कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस में जाने से  हिंदुत्व की जिस खाली जगह को भरने की बात कही जा रही है, वह मनसे ही क्यों भरेगी? बीजेपी क्यों नहीं, जिसने प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने के लिए अपने 25 साल से भी ज़्यादा पुराने साथी को हाशिये पर धकेलने में कोई क़सर नहीं छोड़ी? और सवाल तो यह भी खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ सत्ता बनाने से शिवसेना का हिंदुत्व वाला आधार उससे दूर हो गया है? उद्धव ठाकरे की अयोध्या जाने की घोषणा और ‘हमने सत्ता बनायी है हिंदुत्व का झंडा नीचे नहीं रख दिया’ भी इस बात का संकेत देता है की राह आसान नहीं है!
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

महाराष्ट्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें