दो साल पहले हुआ भीमा कोरेगाँव हिंसा क्या तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार का षडयंत्र था? महाराष्ट्र के एक प्रमुख समाचार पत्र ने शरद पवार द्वारा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिए गए एक पत्र के हवाले से इस पर ख़बर छापी है। अख़बार के अनुसार, पत्र में पवार ने लिखा है कि पुलिस अधिकारियों को आगे कर इस घटना की एक कहानी गढ़ी गयी है। इस दंगे के मुख्य सूत्रधारों को छुपाने के लिए यह किया गया तथा इसमें प्रगतिशील विचारधारा व बुद्धिजीवी लोगों का संबंध माओवादियों से जोड़कर उन्हें हिरासत में लिया गया।
भीमा कोरेगाँव के इस प्रकरण के बाद मीडिया में 'अर्बन नक्सल' की अवधारणा बनी और घंटों उस पर बहसें हुई हैं। जेएनयू में जिस तरह से ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का इस्तेमाल किया गया उसी तरह से 'अर्बन नक्सल' शब्द का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया और टीवी चैनल की बहसों में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं या बुद्धिजीवियों को निशाना बनाने का ट्रेंड शुरू हुआ। शरद पवार के इस पत्र का खुलासा उस समय हुआ है जब कल यानी 23 जनवरी 2020 को प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने इस संबंध में पुणे पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों व महाराष्ट्र पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से विशेष बैठक कर इस प्रकरण की समीक्षा की। उस बैठक के बाद कोई आधिकारिक घोषणा तो नहीं की गयी लेकिन यह संकेत दिए गए कि अग्रिम निर्णय से पहले शीघ्र ही प्रदेश के पुलिस महानिदेशक से इस बारे में एक और बैठक बुलाकर चर्चा की जाएगी।
पवार ने एसआईटी गठित कर इस मामले की फिर से जाँच कराने की माँग की है। यह पहली बार नहीं है जब पवार ने भीमा कोरेगाँव के बारे में टिप्पणी की है। नयी सरकार के गठन के समय भी उन्होंने कहा था कि 'मेरे पास भी कुछ वामपंथी विचारधारा की पुस्तकें पड़ी हैं, इसका यह अर्थ लगाना कि मैं नक्सल हूँ या उसके किसी संगठन से संबंध रखता हूँ कहाँ तक जायज़ है।
बता दें कि 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगाँव में 200 वाँ विजय दिवस मनाने के लिए बड़ी संख्या में दलित समाज के लोग एकत्र हुए थे। कुछ लोगों ने इस उत्सव में बाधा पहुँचाने का काम किया और यह एक दंगे के रूप में बदल गया। पुलिस ने इस मामले में निष्कर्ष निकाला कि इस दंगे के पीछे इस उत्सव से एक दिन पहले यानी 31 दिसंबर 2017 को सावित्री बाई फुले सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित की गयी एल्गार परिषद है। इस परिषद की रूपरेखा पूर्व न्यायाधीश पी.बी. सावंत और बी. जी. कोलसे पाटिल ने बनाई थी।
पवार ने कहा है कि संविधान बचाने, लोकतंत्र बचाने जैसे अनेक आंदोलन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता इसमें शामिल हुए थे जिनमें प्रमुख रूप से आनंद तेलतुंबड़े, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, सुधीर ढवले, सुरेंद्र गडलिंग, गौतम नवलखा, सोमा सेन, रोमा विल्सन, अरुण फरेरा, बर्मन गोंजाल्विस आदि शामिल थे। इनमें से अधिकाँश पुलिस की हिरासत में हैं। उन्होंने कहा कि इसमें कई मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं। पवार ने कहा, “सुधीर ढवले ने तो जर्मन कवि की अनुवादित कविता पढ़ी थी- जब जुल्म हो तो बग़ावत होनी चाहिए शहर में… अगर बग़ावत न हो तो बेहतर है कि रात ढलने से पहले यह शहर जल कर राख हो जाये…” यही नहीं किसी ने मराठी कवि नामदेव ढसाल के कविता संग्रह 'गोलपीठ' की एक कविता पढ़ी थी जिसका भावार्थ है- ‘रक्त से प्रज्वलित अगणित सूर्यों अब शहर-शहर आग लगाते चलो’।
पवार ने कहा कि इन कविताओं का साहित्यिक अर्थ समझने की बजाय इनके आधार पर 'अर्बन नक्सल' की परिभाषा गढ़ना कहाँ तक ठीक है।
पवार ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी इस प्रकरण में दुरुपयोग किया गया है। उल्लेखनीय है कि मुंबई हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने भी इस मामले में मीडिया की भूमिका पर बड़ा खेद जताया था। इस प्रकरण की सुनवाई करते समय उन्होंने जब 'वॉर एन्ड पीस' का नाम लिया था तो यह अख़बारों की सुर्खियाँ बनी थी। बाद में जज ने कहा था कि मीडिया ने इस मामले में उन्हें ग़लत रूप से उद्धृत किया।
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