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महाराष्ट्र में लौटेगी बाला साहब के उग्र हिन्दुत्व की राजनीति?

महाराष्ट्र में सत्ता का समीकरण बदलने के बाद अब हिंदुत्व और ‘मराठी मानुष’ के मुद्दे को लेकर पैंतरेबाज़ी शुरु हो गयी है। भारतीय जनता पार्टी शिवसेना को बालासाहब ठाकरे की हिन्दुत्व की लाइन छोड़ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए कोस रही है। वह हिंदुत्व वोट बैंक अपनी तरफ खींचने की कवायद कर रही है तो महाराष्ट्र नव निर्माण सेना शिवसेना के मराठी मानुष के एजेंडे को अपना रंग देने की कोशिश कर रही है। 

गुरुवार 23 जनवरी को बालासाहब की जयंती पर दोनों ही सेना ने अपना अलग -अलग कार्यक्रम रखे।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा बालासाहब को लेकर किए गए ट्वीट को भी इसी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट में जो वीडियो जोड़ा है, उसमें बालासाहब की हिंदुत्व को लेकर हार्ड लाइन और वचनबद्धता का उल्लेख इसी को दर्शाता है। 

क्या करेगा मनसे?

हालांकि राज ठाकरे द्वारा 14 साल पहले गठित महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को भी इसी नज़रिये से देखा जा रहा था कि वह शिवसेना से  मराठी मानुष का मुद्दा ले लेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। प्रदेश में चार पार्टियों के दो बड़े गठबंधनों की वजह से मनसे कोई नया राजनीतिक समीकरण निर्धारित करने में विफल रही।

लेकिन अब समीकरण बदले हैं तो फिर से नए झंडे के साथ राज ठाकरे मैदान में उतरे हैं। उन्होंने ना सिर्फ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा अंकित पार्टी का नया ध्वज, जिसमें भगवा रंग को प्रधानता दी गयी है, का विमोचन किया, अपितु अपने पुत्र अमित ठाकरे को पार्टी का नेता तथा युवा सेना मनसे का प्रमुख भी बनाया।
मनसे के मंच पर पहली बार विनायक दामोदर सावरकर की तसवीर भी अन्य महापुरुषों की तस्वीरों के साथ लगायी। इसके पीछे शायद यही रणनीति हो सकती है कि जिस तरह से कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद शिवसेना की सावरकर को लेकर स्थिति बनी हुई है, उसका फ़ायदा उठाया जा सके।
पिछले एक महीने में दो ऐसे मामले हुए जिसमें कांग्रेस ने सावरकर को लेकर ऐसे बयान दिए, जिन्हें सुनने की शिवसेना आदी नहीं रही है। 

मराठी अस्मिता का कार्ड!

करीब दस साल पहले शिवसेना प्रमुख बालासाहब ने आदित्य ठाकरे को इसी तरह से युवासेना की ज़िम्मेदारी देते हुए सक्रिय राजनीति में उतारा था। आज वह ठाकरे घराने के पहले जनता द्वारा निर्वाचित जन प्रतिनिधि के रूप में विधायक और कैबिनेट मंत्री बने। दरअसल महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी अस्मिता एक बड़ा कार्ड है और उसके दम पर शिवसेना ने बीते 30 सालों में प्रदेश में अपनी राजनीतिक मजबूत की।
मराठी अस्मिता के कार्ड के चलते जहाँ शिवसेना और मनसे दोनों अपने -अपने तरीके से बालासाहब ठाकरे की जयन्ती पर मराठी अस्मिता के मुद्दे को उठा रही हैं, पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने शिवाजी महाराज के हिंदवी स्वराज्य के प्रतीक गढ़ और किले के संवर्धन की योजना बनायी है।
शरद पवार के पौत्र रोहित पवार ने आदित्य ठाकरे के साथ इस योजना पर चर्चा करते हुए फोटो ट्वीट किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा ' राज्य का नया नेतृत्व गढ़ -किलों के संवर्धन के काम में लग गया है।’

'किलों में नाच होगा?'

उल्लेखनीय है कि साल 2019 में फडणवीस सरकार ने इन किलों को जब निजी पार्टियों के लिए भाड़े पर देने की नीति घोषित की थी तो उसका बड़ा विरोध हुआ था।  शरद पवार जैसे बड़े नेता ने अपने भाषण में यह कहा था कि 'महाराष्ट्र की अस्मिता के प्रतीक शिवाजी महाराज के किलों पर अब छम -छम यानी नाच होगा? यह मुद्दा बहुत गरमाया था और जनता में भी इसको लेकर नाराज़गी दिखने लगी तो फडणवीस सरकार को उस योजना पर सफ़ाई देने पड़ी थी और निर्णय वापस लेना पड़ा था।
महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता के कार्ड पर राजनीति चल रही है। मनसे और बीजेपी सोच रही हैं कि वे शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगा देगी जबकि शिवसेना सत्ता के माध्यम से अपने संगठन को प्रदेश के उन हिस्सों तक फैलाने की तैयारी में जुट गयी है, जहाँ अब तक उसकी उपस्थिति ख़ास नहीं रही।
कांग्रेस और  एनसीपी नए समीकरण के तहत अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत करती दिख रही है। साल 2018 में हुए भीमा कोरेगाँव प्रकरण के बाद अस्तित्व में आयी वंचित आघाडी के वोट बैंक को तोड़ने के लिए दोनों कांग्रेस जुट गयी हैं।

इस बार 1 जनवरी को वहाँ हुए कार्यक्रम में अजित पवार का जाना और तीन दिन पहले शरद पवार का दादर स्थित इंदु मिल में बन रहे बाबा साहब आंबेडकर स्मारक पर जाना इस बात का संकेत। पवार और कांग्रेस दोनों ने मिलकर वंचित आघाडी के साथ गए मुसलिम और दलित वोटों के समीकरण को तोड़ने के लिए मंत्रिमंडल में उसी आधार पर प्राथमिकता दी गयी है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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