प्याज की बढ़ी हुई क़ीमतों ने देश में दो बार केंद्रीय सरकारों को अस्थिर किया है। पहला जनता पार्टी के समय मोरारजी देसाई की सरकार को और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को। एक बार फिर प्याज ने अपने चाहने वालों के आँसू निकालने शुरू कर दिए हैं। महाराष्ट्र में चुनाव हैं इसलिए यहाँ पर यह चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। किसान संगठनों ने प्रदेश में 'कांदा सत्याग्रह' शुरू कर दिया है तो शरद पवार ने प्याज के निर्यात पर रोक के केंद्र सरकार के निर्णय को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 'जब किसान को दो पैसे कमाने का समय आया तो सरकार ने यह पाबंदी लगा दी।' उन्होंने कहा कि यह सरकार विरोधी है और इसके फ़ैसलों से राज्य में इस साल 16 हज़ार किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी है।
महाराष्ट्र चुनाव: किसानों के 'प्याज सत्याग्रह’ से डरेगी सरकार?
- महाराष्ट्र
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- 10 Oct, 2019

महाराष्ट्र में चुनाव हैं इसलिए यहाँ पर प्याज चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। किसान संगठनों ने प्रदेश में 'कांदा सत्याग्रह' शुरू कर दिया है। क्या चुनाव पर इसका असर पड़ेगा?
बाज़ारों में प्याज का खुदरा भाव 50 रुपये प्रति किलो को पार कर चुका है और उसका असर लोगों की जेबों पर दिखने लगा है। लेकिन किसानों में रोष इसलिए है कि पिछले चार सालों से उनके प्याज को अच्छा भाव नहीं मिल रहा था। एक रुपये किलो के भाव में भी प्याज नहीं बिक रहा था। प्याज को महाराष्ट्र के गाँवों से मुंबई के बाज़ार में लाने के लिए जितना गाड़ी-भाड़ा लगता था वह राशि भी उन्हें नहीं मिल पाती थी। उन्होंने पूछा कि तब यह सरकार क्या कर रही थी? प्याज के दाम नहीं मिल पाने के कारण क़र्ज़ में डूबे कई किसानों ने आत्महत्या कर ली, उस समय यह सरकार किसानों की मदद के लिए क्यों नहीं आयी? किसानों का कहना है कि आज चुनाव हैं तो मध्यमवर्गीय लोगों का हवाला देकर सरकार प्याज उत्पादकों व व्यापारियों पर दबाव बनाकर दाम कम कराने की कोशिश कर रही है।