शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। यह याचिका रविवार को लगाई गई। शिंदे गुट ने दलबदल को लेकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही के लिए बागी विधायकों को डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस को चुनौती दी है।
डिप्टी स्पीकर ने सभी बागी विधायकों से सोमवार शाम तक नोटिस का जवाब लेकर सुनवाई के लिए आने को कहा है। लेकिन शिंदे मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए। शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे जबकि शिवसेना की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी अदालत में पैरवी करेंगे। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे की कानूनी टीम ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है।
शिंदे गुट ने अपनी याचिका में कहा है कि पार्टी के 38 विधायकों ने महा विकास आघाडी सरकार से समर्थन वापस ले लिया है और यह सरकार अल्पमत में आ गई है। याचिका में कहा गया है कि महा विकास आघाडी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए डिप्टी स्पीकर के दफ्तर का गलत इस्तेमाल कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन बेंच मामले की सुनवाई करेगी। शिंदे गुट की याचिका में जिसमें डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की अस्वीकृति को चुनौती दी गई है।
शिंदे की याचिका में तर्क दिया गया है कि डिप्टी स्पीकर द्वारा अजय चौधरी को शिवसेना विधायक दल (एसएसएलपी) के नेता के रूप में मान्यता देना अवैध है। शिंदे, जो शिवसेना के 2/3 से अधिक विधायकों के समर्थन का दावा करते हैं, प्रार्थना की है कि जब तक डिप्टी स्पीकर को हटाने से संबंधित मुद्दे पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक अयोग्यता नोटिस पर कार्यवाही रोक दी जानी चाहिए।
शिंदे ने शिवसेना द्वारा नियुक्त किए गए नेता विधायक दल और चीफ व्हिप की नियुक्ति को भी चुनौती दी है।
सीनियर एडवोकेट और शिवसेना के लीगल एडवाइजर देवदत्त कामत ने कहा है कि स्पीकर की गैरमौजूदगी में डिप्टी स्पीकर के पास फैसला लेने की सारी शक्तियां हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के बाहर से पार्टी विरोधी गतिविधियां करने के लिए विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने के पूर्व में कई उदाहरण हैं। देवदत्त कामत ने कहा कि दल बदल कानून से बचने के लिए दो-तिहाई विधायक जरूरी होने का जो फ़ॉर्मूला है वह तभी लागू होता है जब विलय कर लिया जाए। जब तक विधायक किसी दूसरी पार्टी में विलय नहीं करते उन्हें अयोग्य ठहराया जा सकता है।
यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट में कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई पेंडिंग है। जिसमें चुनाव बॉन्ड का मामला प्रमुख है। लेकिन उसमें तारीख पर तारीख लग रही है।
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