महाराष्ट्र में सरकार बनाने में बीजेपी का साथ देने वाले एनसीपी नेता अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले के केस बंद किए जाने की अपुष्ट ख़बर ने तहलका मचा दिया। इसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या सच में अजीत पवार उप मुख्यमंत्री बनते ही सिंचाई घोटाले के आरोपों से पाक-साफ़ हो गए? कई मीडिया रिपोर्टों में तो दावा किया गया कि अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले वाला केस एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी द्वारा बंद कर दिया गया है और इसके लिए बतौर एक एसीबी के नाम से जारी पत्र का हवाला भी दिया गया। लेकिन इस ख़बर के आने के तुरंत बाद ही एसीबी के अधिकारियों ने सफ़ाई दी कि अजीत पवार के ख़िलाफ़ कोई केस बंद नहीं किया गया है। आख़िर सच्चाई क्या है?
बता दें कि एसीबी से जुड़ी यह ख़बर अजीत पवार के उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के दो दिन बाद ही आयी है। उनके बीजेपी सरकार में शामिल होने के साथ ही सवाल उठने लगे कि एनसीपी नेता अजीत पवार पार्टी से बाग़ावत कर बीजेपी की सरकार बनाने क्यों चले गए? वह भी वैसे समय में जब वह एनसीपी के विधायक दल के नेता चुन लिए गए थे, शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनने वाली थी और उनको कोई बड़ा पद मिलने की उम्मीद थी। ऐसे समय में क्यों चले गए जब उनको बीजेपी में शामिल होने के लिए विधायकों का पर्याप्त समर्थन भी नहीं था और ऐसे में बीजेपी की सरकार पर ही तलवार लटकती दिखने वाली थी? क्या अजीत पवार सिर्फ़ उप-मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी के साथ चले गए? बहुत संभव था कि शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी सरकार में भी उन्हें उपमुख्यंत्री का पद मिलता। क्या इसकी वजह कोई और है? शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया था कि अजीत पवार ईडी से डरे हुए हैं।
कई रिपोर्टों में कहा गया है कि अजीत पवार को बीजेपी का साथ देने में दो तरह के फ़ायदे होंगे और इसलिए ही उन्होंने बीजेपी का साथ दिया है। एक यह कि उप-मुख्यमंत्री का पद तो ही है, दूसरा माना जा रहा है कि इससे उन्हें उनके ख़िलाफ़ चल रहे घोटाले के आरोपों से राहत मिल सकती है।
बता दें कि अजीत पवार का नाम सिंचाई घोटाले में भी आया था। माना जाता है कि महाराष्ट्र में 1999 से 2009 के बीच कथित तौर पर 70 हजार करोड़ रुपये का सिंचाई घोटाला हुआ। यह घोटाला राजनेताओं, नौकरशाहों और कॉन्ट्रैक्टर्स की मिलीभगत से हुआ। पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी ने अजीत पवार को इस घोटाले में आरोपी बनाया था। यह कार्रवाई तब हुई जब महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार थी। इस मामले की जाँच जारी है। लेकिन एक सवाल यहाँ यह भी उठता है कि क्या अजीत सिर्फ़ सिंचाई स्कैम के मामले में एसीबी से राहत पाना चाहते हैं? यदि ऐसा है तो एसीबी राज्य सरकार के अधीन आती है और जब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनती तो वह यह राहत पा सकते थे।
रिपोर्टों में कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक यानी एमएससीबी घोटाले में एन्फ़ोर्समेंट डाटरेक्टरेट यानी ईडी से अजीत को राहत मिल सकती है। बता दें कि एमएससीबी घोटाले में ईडी ने इसी साल सितंबर महीने में अजीत पवार सहित अन्य 70 के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है। यह घोटाला क़रीब 25 हज़ार करोड़ रुपये का है।
2007 और 2011 के बीच कथित रूप से एमएससीबी को 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुक़सान पहुँचाने की बात भी सामने आई थी। अजीत पवार उस समय बैंक के निदेशक थे। आरोप लगाया गया कि सहकारी चीनी कारखानों के लिए क़र्ज़ बाँटने में अनियमितताएँ बरती गई थीं।
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